Tuesday, April 6, 2021

◆◆बिटिया◆◆

 ◆◆बिटिया◆◆

बचपन मेरा फिर से लौट के आया
बिटिया ने जब थपकी देकर सुलाया
बैठ सिरहाने मेरे सिर को सहलाया
ममता का बादल मुझ पर बरसाया

वो नन्ही हथेली खुशबू से भरी थी
जैसे डाली कोई फूलों से लदी थी
थोड़ी नर्म थोड़ी गर्म वो छुअन थी
कुछ कुछ मेरी माँ जैसी  लगी थी

बीज ममता का अब अंकुर हो चुका है
हृदय की उर्वर धरा पर रोपा जा चुका है
बन जायेगा एक दिन ये विशाल बरगद
छाया का इक अंश मुझ आज पर पड़ा है

जाने वो कब  इतनी बड़ी  हो गई
मेरी गोद की कली कब सुमन हो गई
मैं उसको दुनियादारी ही सिखाती रही
जाने  कब वो इतनी समझदार हो गई

उसने पीड़ा को मेरे  माथे से  मिटाया
हल्की हँसी का मरहम हृदय को लगाया
नारी होने का मतलब उसने समझाया
बिटिया ने जब थपकी देकर सुलाया।
★★★
प्राची मिश्रा


5 comments:

  1. वाह ये कविता में बचपन की मिठास व माँ का ममत्व एवम वात्सल्य है हृदय प्रफुल्लित हो गया । राधे राधे ।

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  2. बहुत ही खूबसूरत भावपूर्ण सृजन

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