◆◆रख हिम्मत ◆◆
युद्ध ये विनाश का
प्राण और स्वास का
सबको अब लड़ना होगा
घड़ी है ये संकट की आई
हर क्षण अब हमें सम्भलना होना
शत्रु भी अदृश्य है
कारुणिक ये दृश्य है
कहीं टूटती कोई डोर है
किसी रात की न भोर है
कहीं स्वार्थ की आँधी चली
कहीं परमार्थ की खुली गली
कहीं अपनी ही परछाई खो गई
कहीं ग़ैरों की दुनिया अपनी हो गई
विपदा की कैसी है घड़ी आई
दुःख निराशा की बदली छाई
मानव से मानव अब दूर हुआ
होने को क़ैद वो मजबूर हुआ
हार मन की न तेरे होने पाए
साँसों का साथ न खोने पाए
संकल्प ऐसा एक आज करें
"अपनी रक्षा हम स्वयं करें"
★★★
प्राची मिश्रा
"सुरक्षित रहें"🙏😷😷
अनमोल रचना
ReplyDelete