ऐ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
मेरी काया से आज भी
तेरी ही ख़ुशबू आती है
वतन जो छोड़ आये हैं
चंद सिक्के कमाए हैं
हिस्सा भीड़ का होकर
अपने सुख चैन गवायें हैं
कहाँ पाएँ तेरी ममता
जो सर को सहलाती है
ऐ ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
मेरी बोली मेरी होली
मेरी हर बात तुझसे ही
मेरे चेहरे की रंगत में
नज़ाकत है बस तेरी ही
सहेजे हैं जाने कितने तुमने भी
अपने दिल में निशां मेरे कदमों के
संदेशे तेरे हवाएं भी मुझे दे जाती है
ऐ ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
तेरी गोद में वापस सिमटना है
दौड़ लिया बहुत अब रुकना है
तुझसे ही ये जीवन है मिला
एक दिन तुझमें ही इसे मिलना है
साथ जब छूट जाते हैं सारे
तब तू ही सबको अपनाती है
ऐ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है।
★★★
प्राची मिश्रा
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