Poems are the songs that we all loved reciting in our childhood. Poems are rhythmical compositions wielding emotions and beauty in the world, but it's not everyone's cup of tea to use the words so wisely and beautifully. Writing is a magic that can be performed only by the ones who possess the power. Nowadays, writing has become a popular platform and many aspire and try to compose. But not everyone can be called a poet. Indeed, there's a poet inside everyone.
Friday, April 30, 2021
हिन्दोस्तान बिक रहा है
Saturday, April 24, 2021
ये हौसला न टूटने पाये
Thursday, April 22, 2021
रख हिम्मत
Sunday, April 18, 2021
वो आख़री मकान
◆◆वो आख़री मकान◆◆
याद आता है आज भी
गली का वो आख़री मकान
सबसे अलग सा था
कुछ रूठा सा लगता था
जैसे घर का कोई बुज़ुर्ग
टूटा सा लगता था
उखड़ती सी दीवारें थीं
और काँपते से छज्जे थे
चारों ओर काई की चादर थी
और घास के लच्छे थे
गुज़र गया सारा बचपन
उस गली से आते जाते
उस मकान की उम्र को
ढ़लते हुए देखते देखते
उसकी अधखुली खिड़की से
देखा था कई बार
दो बूढ़ी आँखों को
घर के बाहर उम्मीद को ताकते हुए
करते थे लोग बातें
जाने कब ये खंडहर ढहेगा
सुहाता नहीं है ये
चमचमाती बिल्डिंगों के बीच
मनहूसियत सा अड़ा बैठा है
गिर रहा है फिर भी ऐंठा है
छोड़ माँ बाप को
बेटा उस घर का विदेश जा बसा था
याद नहीं अब किसी को
वो घर आख़री बार कब हँसा था
त्योहारों का आना जाना भी अब
बंद सा हो गया था वहाँ
निराशा बैठी रहती द्वार पर
ख़ामोशियों के डेरे थे जहाँ तहाँ
एक दिन जाने क्यूं मेला सा उस घर के बाहर लगा था
सूखे दो शरीर पड़े थे बिस्तर पर
इंतजार फंदे पर लटका रहा था
कोई दुखी था तो कोई हर्षित था
अब निकली अकड़ इस मकान की
कुछ ही दिनों में भरभरा गया
जैसे आत्मा निकल गई हो शरीर से
★★★
प्राची मिश्रा
Saturday, April 17, 2021
समय तो लगता है
◆◆समय तो लगता है◆◆
समय तो लगता है
हिमपर्वतों का हृदय पिघने में
जमी हुई शून्य भावनाओं में
पुनः जीवन भरने में
सूर्य की किरणें लुटाती हैं
अपना सर्वस्व उस पर
दे ऊष्मा अनंत प्रेम की नित दिन
समय तो लगता है
प्रेम अश्रु नैनों से ढलने में
समय तो लगता है
प्रगति के पथ पर जाने में
बाधाओं को हृदय से लगाकर
पीड़ाओं को सहचरी बनाकर
निरन्तर कंटकों से पार पाने में
आशा के बस एक जगमग जुगनू से
प्रकाशमय सारा जीवन बनाने में
समय तो लगता है
सफलता से भेंट हो जाने में
समय तो लगता है
बीज में सोया विशाल बरगद जगाने में
विश्वास की एक बूँद को सागर बनाने में
जीवन तो जीते सभी हैं यहाँ पर
पर जीवन को जीने योग्य बनाने में
हृदय जो नहीं दुखते परपीड़ा में
समय तो लगता है
पाषाणों में पुष्प प्रेम का खिलाने में
समय तो लगता है
प्रेम का सच्चा मर्म पाने में
मैं और तुम से"हम" हो जाने में
तन की माया से बहुत ऊपर उठ जाने में
प्रेम "राधा" और "मीरा" सा हो जाने में
अधरों के हिले बिना ही बात सारी हो जाये
ऐसा प्रेम आधार पाने में
समय तो लगता है
धरा पर स्वर्ग लाने में
★★★
प्राची मिश्रा
Tuesday, April 6, 2021
◆◆बिटिया◆◆
◆◆बिटिया◆◆
बचपन मेरा फिर से लौट के आया
बिटिया ने जब थपकी देकर सुलाया
बैठ सिरहाने मेरे सिर को सहलाया
ममता का बादल मुझ पर बरसाया
वो नन्ही हथेली खुशबू से भरी थी
जैसे डाली कोई फूलों से लदी थी
थोड़ी नर्म थोड़ी गर्म वो छुअन थी
कुछ कुछ मेरी माँ जैसी लगी थी
बीज ममता का अब अंकुर हो चुका है
हृदय की उर्वर धरा पर रोपा जा चुका है
बन जायेगा एक दिन ये विशाल बरगद
छाया का इक अंश मुझ आज पर पड़ा है
जाने वो कब इतनी बड़ी हो गई
मेरी गोद की कली कब सुमन हो गई
मैं उसको दुनियादारी ही सिखाती रही
जाने कब वो इतनी समझदार हो गई
उसने पीड़ा को मेरे माथे से मिटाया
हल्की हँसी का मरहम हृदय को लगाया
नारी होने का मतलब उसने समझाया
बिटिया ने जब थपकी देकर सुलाया।
★★★
प्राची मिश्रा
Thursday, April 1, 2021
मुक्तक
◆◆ऐ मेरे गाँव की मिट्टी◆◆
ऐ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
मेरी काया से आज भी
तेरी ही ख़ुशबू आती है
वतन जो छोड़ आये हैं
चंद सिक्के कमाए हैं
हिस्सा भीड़ का होकर
अपने सुख चैन गवायें हैं
कहाँ पाएँ तेरी ममता
जो सर को सहलाती है
ऐ ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
मेरी बोली मेरी होली
मेरी हर बात तुझसे ही
मेरे चेहरे की रंगत में
नज़ाकत है बस तेरी ही
सहेजे हैं जाने कितने तुमने भी
अपने दिल में निशां मेरे कदमों के
संदेशे तेरे हवाएं भी मुझे दे जाती है
ऐ ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है
तेरी गोद में वापस सिमटना है
दौड़ लिया बहुत अब रुकना है
तुझसे ही ये जीवन है मिला
एक दिन तुझमें ही इसे मिलना है
साथ जब छूट जाते हैं सारे
तब तू ही सबको अपनाती है
ऐ! मेरे गाँव की मिट्टी
बहुत तू याद आती है।
★★★
प्राची मिश्रा
हाँ!मैं औरत हूँ
◆◆हाँ! मैं औरत हूँ◆◆ नए ज़माने के साथ मैं भी क़दम से क़दम मिला रही हूँ घर के साथ साथ बाहर भी ख़ुद को कर साबित दिखा रही हूँ हर क...
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◆◆हाँ! मैं औरत हूँ◆◆ नए ज़माने के साथ मैं भी क़दम से क़दम मिला रही हूँ घर के साथ साथ बाहर भी ख़ुद को कर साबित दिखा रही हूँ हर क...
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◆◆ पेड़ जीवित रहने दो◆◆ कुछ पेड़ तो जीवित रहने दो कुछ प्राणवायु भी बहने दो मानव के भीतर की मानवता को यूँ न हरपल मरने दो, कुछ पेड़ त...
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◆◆ हिंदुस्तान बिक रहा है ◆◆ मान बिक रहा है सम्मान बिक रहा है हुआ बड़ा ही सस्ता इंसान बिक रहा है बिक गई है किसी बेबस की मज़बूरी चंद...