◆◆दोस्ती◆◆
जो कहते थे दोस्ती निभाएंगे उम्रभर
साथ ना छोंड़ेंगे किसी भी तूफ़ान में
हवाएँ कुछ क्या ख़िलाफ़ हुईं हमारे
वो सूखे पत्तों की तरह बिखर गए
उम्मीद कभी ना करते थे उनसे कोई
कुछ माँगे बिन ही वो यूँ मुकर गए
वो जो केवल जाम के साथी थे
वो अंजाम तक रुकते भी कैसे
मेरी बेबसी पर झूठे दिलासे देते रहे
हम भी हर ग़म उनसे ही कहते रहे
उन पर यकीं था ख़ुद से भी ज्यादा
शक़ तो हम ख़ुद पर ही करते रहे
ग़लत न वो थे न बेबस थे हम
बस सब वक्त का था तकाज़ा
चादर मेरे औक़ात की क्या हटी
असलियत उनकी नज़र आ गई
और आई नज़र वो गलतफहमियां
जो मेरे दिल को ढ़के हुए बैठी थीं
जाने क्या निभा रहे थे हम दोनों
जाने क्या क्या छुपा रहे थे हम दोनों
बात क्या थी जो वो कह ना सके हमसे
हम तो उन्हें दिल की चाभी देकर बैठे थे
नहीं जरूरी था दोस्ती मेरी जैसी वो भी निभाते
बस एहसान एक कर देते नक़ाब उतार कर आते
तोड़ कर मेरा विश्वास काँच के जैसे
मिलते हैं अब बड़े ही अदब से मुझसे
जानते हैं जिनकी हर एक हक़ीक़त अब हम
सोचते हैं वो बड़े ही नदान हैं अभी भी हम
वक़्त कहाँ रहता है एक सी अदा में हमेशा
बदलना तो फ़ितरत है इसकी ये याद रहे सदा
वक़्त का क्या है ये एक दिन गुज़र जाएगा
पर सबक जो मिला तुझसे याद रह जायेगा।
★★★
प्राची मिश्रा
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