◆◆इश्क़ की डायरी◆◆
मुद्दतों से संभाली वो इश्क़ की डायरी
निकल ही पड़ी आज अलमारी से मेरी
जैसे आता है हवा का झोंका सर्द रातों में
जो देता है झकझोर अंदर तक बदन को
कंपा देता है रूह को मेरे वो यादों का बवंडर
जो संभाला था कब से जिम्मेदारियों की गर्म चादर में
इश्क़ इस क़दर था उनसे क्या कहें
कि मर भी जाते तो ग़म न होता
बेहयाई का आलम था कमबख़्त
और जवानी का ख़ुमार था मदमस्त
हर पन्ने पर थे उनके गर्म हाँथों के एहसास
और उनके दिए हुए कुछ सूखे गुलाब
याद आज फिर आया वो गुज़रा ज़माना
जब आज हमनें खोली वो डायरी इश्क़ की
बेवफ़ा न थे कभी मेरे इश्क़ के सारे वादे
थे सच्चे वो सब ख़ुदा की इबादत की तरह
बस तरज़ीह किसी और को दे दी तुमसे ज़्यादा
तुम्हारी सलामती की दुआ अब भी हर रोज़ करते हैं
कैसे बताएँ ऐ हमदम तेरी याद में हम हर रोज़ मरते हैं
जो हो न सकी मुक़म्मल मोहब्बत तेरी मेरी
पूरी करेंगे रूह बनके ये कहानी तेरी मेरी
समेट के सारे ख़्वाब,अरमान,एहसास और यादें
रख देती हूँ फिर से इश्क़ की डायरी के भीतर
जब डूबना होगा तेरी यादों के दरिया में
खोलूँगी फिर से ये डायरी इश्क़ की ।
★★★
प्राची मिश्रा
Very nice
ReplyDeletethnx
DeleteExcellent. ...
ReplyDeletethnx
Deleteबहुत ही शानदार प्रस्तुति
ReplyDeletethnx
ReplyDeleteTotally epic .. best best best 👌👌👌👌👌👌
ReplyDeletethnx
Deleteशब्द ही पहचान है आपक👌👍
ReplyDeletethanx
Deleteलाजवाब ...
ReplyDeleteपूरी करेंगे रूह बनके ये कहानी..
लफ्जों की एहसासों में डुबकी लगाने वाले ही समझ पाएंगे इस कविता की भाव-भंगिमाओं को।
संजय कुमार झा
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