Monday, October 26, 2020

विदाई

◆◆विदाई◆◆


आज एक बिटिया की विदाई है
अपनों से होने वाली असहनीय जुदाई है
वो रोती और सिसकती है
अपनों से हर बार लिपटती है
अब घड़ी विरह की आई है
आज एक बिटिया की विदाई है

पलकों में अश्रुधारा है
कंपित से तन मन सारा है
फिर भी हर्षित घर सारा है
आज मिला दामाद हमारा है
वो मुड़ मुड़ कर पीछे देख रही
दीवारों से कुछ बोल रही
रोती सी बजती शहनाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

माँ के आँचल को पकड़ रही
बाबा के कुर्ते से लिपट रही
भाई के हाँथों को भी चूम रही
दादी के आँसू पोंछ रही
बहनों को भी गले लगाती है
घर की कुछ बात बताती है
सब कहते अब वो पराई है
आज एक बिटिया की बिदाई है

आँगन की तुलसी वहीं खड़ी
कुछ बोझिल सी कुछ हर्षित भी
पानी का मटका वहीं पड़ा
कुछ खाली सा कुछ भरा भरा
रसोई की गर्मी भी कम सी है
वो गाय भी कुछ गुमसुम सी है
बिटिया के जाने की तन्हाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

जो कल खिल खिलकर हँसती थी
अब दबी हँसी वो पाई है
जो फुदक फुदक कर चलती थी
सहमी सी चाल बनाई है
जिसकी पायल थी पतंग आसमानों की
आज कुछ बोझिल सी हो आई है
सीख उसने आज ढंग नया
रीति भी नई अपनाई है
आज एक बिटिया की बिदाई है।
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प्राची मिश्रा


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