◆◆रंग सफ़ेद◆◆
आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद
न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद
जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद
जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया
खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★
प्राची मिश्रा
आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद
न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद
जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद
जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया
खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★
प्राची मिश्रा
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