◆◆एसिड अटैक◆◆
जो मिल ना सकी वो मिटाई गई
देह उसकी बेरहमी से जलाई गई
सुंदरता जो बन बैठी काल उसका
फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई
बाबा की लाडो अम्मा की चिड़िया
घर की जान वो प्यारी सी बिटिया
जब पंखों से अपने उड़ने को हुई
कुछ कुंठित नज़रों से बच ना सकी
आकाश से यूँ धरा पर गिराई गई
फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई
वो चीत्कार उसकी हृदय चीरती सी
वो तड़पती जैसे जल बिन मछली सी
ये जलन तन की ही नहीं मन की भी है
ये तड़प आज की ही नहीं उम्रभर की है
तोड़ हिम्मत उसकी बेबस बनाई गई
फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई
वो बिखरी थी ऐसी जैसे माला के मोती
न खाती न पीती डर डर के वो सोती
कागज़ पर अध मिटी वो लिखावट के जैसी
निहारे न दर्पण हो गई कितनी गुमसुम सी
तन ही नहीं मन से भी जलाई गई
फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई
समेटकर सारी हिम्मत और जज़्बा
फिर से वो जीना सीख ही लेगी
स्वर्ण की तरह तपाकर स्वयं को
वो ख़ुद निखरना सीख ही लेगी
पर उसकी झुलसी देह सदा ही
ये प्रश्न समाज से करती रहेगी
क्यों पहचान मेरी मिटाई गई
क्यों सरे राह मैं जलाई गई।
★★★
प्राची मिश्रा
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