◆◆मुझे रविवार चाहिए ◆◆
मुझे भी एक रविवार चाहिए
साल में बस एक दो बार चाहिए
खो रही हूँ अपने ही भीतर कहीं मैं
ख़ुद के साथ घण्टे दो चार चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
सरपट दौड़ती रोज़ की सुबह नहीं
एक दिन मीठी सी भोर चाहिए
रसोई की चिंता यूँ तो कभी जाती नहीं
पर एक दिन मुझे भी अवकाश चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
न कपड़े न बर्तन न झाड़ू न कटका
न बच्चों का होमवर्क न पानी का मटका
एक दिन इनकी न हो कोई फ़िक्र मुझे
एक प्याली गर्म चाय बिस्तर पर चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
सब बैठें हों जब साथ मैं किचन में न रहूँ
वो बातें वो ठहाके जो छूट गए थे कभी
वो सब एक दिन के लिए लौटा दो मुझे
आधी हँसी नहीं बेफ़िक्र मुस्कान चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
घर के हर कोने में बसती है जान मेरी
मुझे प्यारी बहुत है ये दुनिया मेरी
शिकायत नहीं है ये है ख़्वाहिश मेरी
एक दिन मुझे भी थोड़ा आराम चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
★★★
प्राची मिश्रा
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना प्राची जी🙏💐
ReplyDeleteBht sunder bhena
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