Tuesday, October 27, 2020

इश्क की डायरी

◆◆इश्क़ की डायरी◆◆
  


मुद्दतों से संभाली वो इश्क़ की डायरी
निकल ही पड़ी आज अलमारी से मेरी
जैसे आता है हवा का झोंका सर्द रातों में
जो देता है झकझोर अंदर तक बदन को
कंपा देता है रूह को मेरे वो यादों का बवंडर
जो संभाला था कब से जिम्मेदारियों की गर्म चादर में

इश्क़ इस क़दर था उनसे क्या कहें
कि मर भी जाते तो ग़म न होता
बेहयाई का आलम था कमबख़्त
और जवानी का ख़ुमार था मदमस्त
हर पन्ने पर थे उनके गर्म हाँथों के एहसास
और उनके दिए हुए कुछ सूखे गुलाब
याद आज फिर आया वो गुज़रा ज़माना
जब आज हमनें खोली वो डायरी इश्क़ की

बेवफ़ा न थे कभी मेरे इश्क़ के सारे वादे
थे सच्चे वो सब ख़ुदा की इबादत की तरह
बस तरज़ीह किसी और को दे दी तुमसे ज़्यादा
तुम्हारी सलामती की दुआ अब भी हर रोज़ करते हैं
कैसे बताएँ ऐ हमदम तेरी याद में हम हर रोज़ मरते हैं
जो हो न सकी मुक़म्मल मोहब्बत तेरी मेरी
पूरी करेंगे रूह बनके ये कहानी तेरी मेरी

समेट के सारे ख़्वाब,अरमान,एहसास और यादें
रख देती हूँ फिर से इश्क़ की डायरी के भीतर
जब डूबना होगा तेरी यादों के दरिया में
खोलूँगी फिर से ये डायरी इश्क़ की ।
★★★

प्राची मिश्रा


Monday, October 26, 2020

रंग सफ़ेद


 ◆◆रंग सफ़ेद◆◆


आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद
न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद

जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद

जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया

खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर 
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★

प्राची मिश्रा


आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद

न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद

जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद

जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया

खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर 
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★

प्राची मिश्रा


कल जैसा कुछ नहीं होता है

◆◆कल जैसा कुछ नहीं होता है◆◆


क्यों करते हो कल कल हर पल

कल जैसा कुछ नहीं होता है

जो करता रहता है बस कल कल

वो हर हाल में एक दिन रोता है

जो करना है वो आज करो

कल जैसा कुछ नहीं होता है।


सब कुछ यहाँ रुक सकता है

पर रुक ना पाता समय कभी

जो समझ गया कीमत इसकी

उसने रुकना फिर सीखा न कभी

तो समझ लो इसकी कीमत को

सब कुछ है तुम्हारा आज अभी

कल जैसा कुछ नहीं होता है।


सब कल की दुनिया में ही जीते हैं

यहाँ आज को जीता है कोई कोई

जो जी लेता है आज यहाँ

उसे कल की जरूरत है ही नहीं

ये साँसों की कच्ची डोरी है

कब जाए चटक क्या जाने कोई

कर लो पूरे अरमान सभी बस आज अभी

कल जैसा कुछ नहीं होता है।

★★★

प्राची मिश्रा


आदमी

◆◆आदमी◆◆



जिंदगी की उधेड़ बुन में उलझा हुआ
सपनों के बाजार में खड़ा वो आदमी
अपनी मेहनत की जेब में पड़े हुए
कुछ औक़ात के सिक्कों को गिन रहा है
कौन सा सपना सस्ता और कौन सा है महँगा
क्या खरीद ले जाएगा आज वो घर अपने
और सजा देगा अपनों की पलकों पर
और क्या है जो छूट जाएगा अधूरा
बस अरमानों के मोलभाव में यूँ ही।

हर पल को बस अपनों के लिए जीता हुआ
दर्द के दामन को मर्दानगी  की सुई से सिलता रहा
कहीं दिख न जायें बेबसी के निशां किसी को
मुखौटे हर रोज़ हज़ारों बदलता रहा
कभी घुटता रहा कभी पिसता रहा
पर वो आदमी था तो यूँ ही हँसता रहा।

ये ज़माना भी कमाल करता है
जो रोयें अबला तो मलाल करता है
मर्दों के रोने पर सवाल करता है
इसी कश्मकश में डूबा हुआ वो आदमी
कर न सका दर्द ए बयां किसी से
बना रहा सख्त दरख्तों सा यूँ ही
दिल की नरमी दिखाता भी किसको।

हर रोज़ मेहनत से टूटता बिखरता हुआ वो आदमी
घर लौट आता है समेटे स्वाभिमान की चिल्लर
दिल में हों चाहे तूफ़ान कई और थकान भरे हों सारे अंग
न कहता किसी से ,बस सहता हुआ वो आदमी
बस बिखेर देता है घर में ठंडे झोकें सुख और आराम के
जीवन की उधेड़बुन में उलझा सा वो आदमी।
★★★
प्राची मिश्रा


विदाई

◆◆विदाई◆◆


आज एक बिटिया की विदाई है
अपनों से होने वाली असहनीय जुदाई है
वो रोती और सिसकती है
अपनों से हर बार लिपटती है
अब घड़ी विरह की आई है
आज एक बिटिया की विदाई है

पलकों में अश्रुधारा है
कंपित से तन मन सारा है
फिर भी हर्षित घर सारा है
आज मिला दामाद हमारा है
वो मुड़ मुड़ कर पीछे देख रही
दीवारों से कुछ बोल रही
रोती सी बजती शहनाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

माँ के आँचल को पकड़ रही
बाबा के कुर्ते से लिपट रही
भाई के हाँथों को भी चूम रही
दादी के आँसू पोंछ रही
बहनों को भी गले लगाती है
घर की कुछ बात बताती है
सब कहते अब वो पराई है
आज एक बिटिया की बिदाई है

आँगन की तुलसी वहीं खड़ी
कुछ बोझिल सी कुछ हर्षित भी
पानी का मटका वहीं पड़ा
कुछ खाली सा कुछ भरा भरा
रसोई की गर्मी भी कम सी है
वो गाय भी कुछ गुमसुम सी है
बिटिया के जाने की तन्हाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

जो कल खिल खिलकर हँसती थी
अब दबी हँसी वो पाई है
जो फुदक फुदक कर चलती थी
सहमी सी चाल बनाई है
जिसकी पायल थी पतंग आसमानों की
आज कुछ बोझिल सी हो आई है
सीख उसने आज ढंग नया
रीति भी नई अपनाई है
आज एक बिटिया की बिदाई है।
●●●

प्राची मिश्रा


तेरे प्यार का नगमा होंठों पर

◆◆तेरे प्यार का नगमा होंठो पर◆◆

  


कहते कहते रुक जाते हैं

जब पास तुम्हारे आते हैं 

और बात उलझ सी जाती है

  मेरे उलझे जज़्बातों की डोरी में
  बस दिल की दिल में रह जाती है
  जब तुमसे कुछ कहने जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  तेरी आँखें कितनी हैं गहरी
  हम डूबके ही रह जाते हैं
  तेरी बेमतलब की बातें भी
  बस यूँ ही सुनते जाते हैं lp
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  क्या महसूस तुम्हें भी होता है
  मैं जो हरपल महसूस करूँ
  आसमान गुलाबी सा जो है
  ये महक भरी जो हवाएं हैं
  क्या ये बस मेरा सपना है
  या जादू सा कुछ तुम कर जाते हो 
  सब सोच के हम दिल ही दिल में
  बस यूँ ही शरमा से जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं।
  ★★★
   
  प्राची मिश्रा
  


शिकायत नहीं है

◆◆ शिकायत नहीं है◆◆


मुझे नहीं है शिकायत किसी से
जो है जैसा है जितना है काफी है
मेरे हिस्से का है मिला जो मुझे
मेरी किस्मत ने जो भी दिया है मुझे
वो लोग जो करते हैं उल्फ़त मुझे
और करते हैं जो नफ़रत मुझसे
वो सब भी क़ुबूल हैं मुझको
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

वो छत जो मेरा जहाँ बन गयी
वो माँ जो मेरा आसमां बन गयी
वो गुल्लक के चंद सिक्के अमानत मेरी
वो मैली सी चादर सुकून बन गयी
वो धुधंला सा आईना जो दीवार पर टँगा
बड़ी साफ सी सूरत दिखाता मेरी
सब कुछ बहुत है उम्दा यहाँ क्योंकि
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

मेरी खुशियों का वो आँगन मैला सा
मेरे ग़मों का वो टूटा चबूतरा
वो साथी मेरे कुछ पक्के से
वो मटके पानी के कच्चे से
वो बारिश भी कुछ मटमैली सी
और गर्मी की रुत बड़ी रूखी सी
सब कुछ है बस मेरे लिए
क्योंकि मुझे शिकायत नहीं है किसी से।
★★★

प्राची मिश्रा


मैं बता तो दूँ

◆◆मैं बता तो दूँ◆◆


मैं जता तो दूँ
वो दबे जज़्बात
मैं बता तो दूँ
जो है दिल में बात
पर बिखर जाएगा
रिश्तों का घरौंदा
टूट पड़ेगा आसमान
ढह जायेंगी कई दीवारें
मैं सोच अपनी चला तो दूँ

भर चुकी हूँ विचारों से
और अनगिनत प्रश्नों से
अंतर्मन में बंदी है जो
मेरी जैसी एक और मैं
स्वतंत्र उसे कर तो दूँ
पर रह जाऊंगी अकेली
मैं असली चेहरा दिखा तो दूँ

हर रोज़ खोदती हूँ
एक कब्र,मन में अपने
और दबा देती हूँ
राज़ और जज़्बात कई
हर किसी के दिल में
होता है ये कब्रिस्तान
मैं अकेली तो नहीं
वो मुर्दे गड़े मैं जगा तो दूँ
पर है क्या कोई
समझने वाला उनको
मैं बात अपनी समझा तो दूँ

हर रोज़ जब होती हूँ तैयार
नहीं भूलती हूँ पहनना
एक मुखोटा ,दुनिया के लिए
एक नहीं कई हैं मेरे पास
जो बदलती हूँ मैं
वक्त और हालत देखकर
एहसास और इंसान देखकर
मैं असलियत अपनी दिखा तो दूँ
कौन पहचानेगा मुझे
मैं चेहरे से पर्दा हटा तो दूँ।

ये सारी क़वायद
दुनिया में जीने के लिए
साथ सबके हँसने
और रोने के लिए
ये कहानी है सबकी
इंसानों की हर बस्ती की
पर कौन मानेगा
ये कहानी है उसकी
मैं भीड़ में उंगली उठा तो दूँ।
★★★
प्राची मिश्रा


एसिड अटैक

◆◆एसिड अटैक◆◆


जो मिल ना सकी वो मिटाई गई

देह उसकी बेरहमी से जलाई गई

सुंदरता जो बन बैठी काल उसका

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


बाबा की लाडो अम्मा की चिड़िया

घर की जान वो प्यारी सी बिटिया

जब पंखों से अपने उड़ने को हुई

कुछ कुंठित नज़रों से बच ना सकी

आकाश से यूँ धरा पर गिराई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


वो चीत्कार उसकी हृदय चीरती सी

वो तड़पती जैसे जल बिन मछली सी

ये जलन तन की ही नहीं मन की भी है

ये तड़प आज की ही नहीं उम्रभर की है

तोड़ हिम्मत उसकी बेबस बनाई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


वो बिखरी थी ऐसी जैसे माला के मोती

न खाती न पीती डर डर के वो सोती

कागज़ पर अध मिटी वो लिखावट के जैसी

निहारे न दर्पण हो गई कितनी गुमसुम सी

तन ही नहीं मन से भी जलाई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


समेटकर सारी हिम्मत और जज़्बा

फिर से वो जीना सीख ही लेगी

स्वर्ण की तरह तपाकर स्वयं को

वो ख़ुद निखरना सीख ही लेगी

पर उसकी झुलसी देह सदा ही

ये प्रश्न समाज से करती रहेगी

क्यों पहचान मेरी मिटाई गई

क्यों सरे राह मैं जलाई गई।

★★★


प्राची मिश्रा

मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

 ◆◆मेरा छोटा सा शहर जवान हो गया ◆◆




मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया
कल तक जो भोला सा बच्चा था
और सूझबूझ में थोड़ा कच्चा था
आज बड़ा ही बेईमान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

जो कल मार ठहाके हँसता था 
खुश बेमतलब ही जो रहता था
वो भूल गया है सब हँसना गाना
सीखा उसने खुद में ही खो जाना
बड़े बड़े ख़्वाबों की दुकान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

पैसों के पीछे भागना सीख गया
रिश्ते से भी अब वो ऊब गया
खुश खुद में ही रहना सीख गया
मिलता है कम अब वो यारों से
मेला सा है बाहर पर अंदर से वीरान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

वो चौपालें भी अब सूनी हो गईं
जहाँ सजती थी महफ़िल दीवानों की
घर जो कल कच्चे थे पर दिल के सच्चे थे
आज मकान बन गये और दिल पत्थर से हो गए
गलियों  में मिलते जुलते भी अंजान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया।

रोशनी में नहाया है पर अंदर से बड़ा काला है
झूठ की ऊँची माया है सच के मुँह पर ताला है
मन से हुआ गरीब पर तन से धनवान हो गया
जो बस्ती थी दिलवालों की आज सिटी स्मार्ट हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया
★★★
प्राची मिश्रा


मुझे रविवार चाहिए

 ◆◆मुझे रविवार चाहिए ◆◆




मुझे भी एक रविवार चाहिए
साल में बस एक दो बार चाहिए
खो रही हूँ अपने ही भीतर कहीं मैं
ख़ुद के साथ घण्टे दो चार चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सरपट दौड़ती रोज़ की सुबह नहीं 
एक दिन मीठी सी भोर चाहिए
रसोई की चिंता यूँ तो कभी जाती नहीं
पर एक दिन मुझे भी अवकाश चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए 

न कपड़े न बर्तन न झाड़ू न कटका
न बच्चों का होमवर्क न पानी का मटका
एक दिन इनकी न हो कोई फ़िक्र मुझे
एक प्याली गर्म चाय बिस्तर पर चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सब बैठें हों जब साथ मैं किचन में न रहूँ
वो बातें वो ठहाके जो छूट गए थे कभी
वो सब एक दिन के लिए लौटा दो मुझे
आधी हँसी नहीं बेफ़िक्र मुस्कान चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

घर के हर कोने में बसती है जान मेरी
मुझे प्यारी बहुत है ये दुनिया मेरी
शिकायत नहीं है ये है ख़्वाहिश मेरी
एक दिन मुझे भी थोड़ा आराम चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
★★★

प्राची मिश्रा

मेघों का प्रेम


 

 ◆◆ मेघों का प्रेम ◆◆


हृदय मेघों का जब भी प्रेम में पिघल जाता है
बन के बूँद बरखा की धरा पर बरस जाता है
महक उठता है तन मन भूमि का सौंधी सी ख़ुशबू से
मधुर स्पर्श बूँदों का जब धरती के मन में होता है

प्यासी धरती के सूखे अधरों की बेचैन तड़पन को
कारे मेघों से बेहतर भला कौन जान पाता है
राह जिसकी ताकती है दिन रात ये धरती
वो निर्मोही सा घन भी तो बड़ी देरी से आता है

गरजकर तीव्र बेचैनी जब अपनी दिखाता है 
चमकती दामिनियों में तड़प अपनी सुनाता है
मिटा सन्ताप सारा धरा का कण कण भिगाता है
टूटकर अभ्र के मन से अवनि के तन में समाता है

कर श्रृंगार धरती का हरित अस्तर ओढ़ाता है
लुटाकर प्रेम अविरल नव अंकुर खिलाता है
सहती है धरती जितनी नभ के विरह की ज्वाला
वही पीड़ा वो बादल भी सहकर के आता है

नहीं होता सदा ही प्रेम में प्रेमी का मिल जाना
होता है प्रेम वो सच्चा के प्रेमी में ही मिल जाना
निभाकर प्रेम धरती से घन सदा हमको सिखाते हैं
प्रेम की पूर्ण परिभाषा स्वयं मिटकर बताते हैं
★★★

प्राची मिश्रा

Sunday, October 11, 2020

दोस्ती






 ◆◆दोस्ती◆◆

                      
जो कहते थे दोस्ती निभाएंगे उम्रभर
साथ ना छोंड़ेंगे किसी भी तूफ़ान में 
हवाएँ कुछ क्या ख़िलाफ़ हुईं हमारे
वो सूखे पत्तों की तरह बिखर गए 
उम्मीद कभी ना करते थे उनसे कोई
कुछ माँगे बिन ही वो यूँ मुकर गए

वो जो केवल जाम के साथी थे
वो अंजाम तक रुकते भी कैसे
मेरी बेबसी पर झूठे दिलासे देते रहे
हम भी हर ग़म उनसे ही कहते रहे
उन पर यकीं था ख़ुद से भी ज्यादा
शक़ तो हम ख़ुद पर ही करते रहे

ग़लत न वो थे न बेबस थे हम
बस सब वक्त का था तकाज़ा
चादर मेरे औक़ात की क्या हटी
असलियत उनकी नज़र आ गई
और आई नज़र वो गलतफहमियां
जो मेरे दिल को ढ़के हुए बैठी थीं

जाने क्या निभा रहे थे हम दोनों
जाने क्या क्या छुपा रहे थे हम दोनों
बात क्या थी जो वो कह ना सके हमसे
हम तो उन्हें दिल की चाभी देकर बैठे थे
नहीं जरूरी था दोस्ती मेरी जैसी वो भी निभाते
बस एहसान एक कर देते नक़ाब उतार कर आते

तोड़ कर मेरा विश्वास काँच के जैसे
मिलते हैं अब बड़े ही अदब से मुझसे
जानते हैं जिनकी हर एक हक़ीक़त अब हम
सोचते हैं वो बड़े ही नदान हैं अभी भी हम
वक़्त कहाँ रहता है एक सी अदा में हमेशा
बदलना तो फ़ितरत है इसकी ये याद रहे सदा
वक़्त का क्या है ये एक दिन गुज़र जाएगा
पर सबक जो मिला तुझसे याद रह जायेगा।
★★★
प्राची मिश्रा

क़लम की आवाज़


 

 ◆◆क़लम की आवाज़◆◆


कभी प्रेम लिखती है
कभी विद्रोह करती है
कभी स्वप्न बुनती है
कभी द्रवित बहती है
ढ़लती कवि रंग में
कवि जैसी रहती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है

हर्षित करे ये उर कभी
कभी आक्रोश भरती है
सत्य दिखला दे कभी
कभी भ्रमित करती है
तेज इसमें रवि सा कभी
कभी अंधकार लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है

यौवन लिखे नारी का कभी
कभी गाथा वीरों की लिखती है
बदल देती है सिहासन कई
जब कागज़ पर चलती है
इतिहास रच देती है नए
जब सत्य लिखती है
कभी युद्ध लिखती है 
कभी विनाश लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है 
यूँ ही बेबाक़ कहती है

है क़लम वो सच्ची जहाँ में
जो कवि का ह्रदय लिखती है
लिखती है वो बात समाज की
जो ना किसी के भय में रहती है
है क़लम तब तक वो बड़े काम की
जब तक ना वो पैसों में बिकती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है।

★★★
प्राची मिश्रा



हाँ!मैं औरत हूँ

◆◆हाँ! मैं औरत हूँ◆◆ नए ज़माने के साथ मैं भी क़दम से क़दम मिला रही हूँ घर के साथ साथ बाहर भी ख़ुद को कर साबित दिखा रही हूँ हर क...