Tuesday, April 21, 2020

बूढ़ा बरगद

पिछले वर्ष मेरे दादाजी का देहांत हो गया, वो मुझसे बहुत स्नेह करते थे पंरतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य था की मैं उनके अंतिम दर्शन नहीं कर सकी, ये बात मुझे आज भी बहुत कष्ट देती है ,हालाँकि मेरे दादाजी बायसी वर्ष की आयु में स्वर्ग सिधारे और अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए जो उनसे अत्यधिक प्रेम करता है ,परन्तु सभी मेरे दादाजी की तरह भाग्यशाली नहीं होते ,मैं एक वाकया सुनाना चाहूंगी "मेरे दादा जी की तेरहवीं का दिन था मेहमान आ जा रहे थे हम सभी काफी व्यस्त थे ,की तभी दादाजी के एक मित्र आ गए और पापा ने मुझे उनका ध्यान रखने के लिए कहा, चूँकि वो मुझे भली प्रकार से जानते थे इसलिए बड़े प्यार से मेरी कुशलक्षेम पूछने लगे तो मैंने भी उनका हाल चाल पूछा ,बस फिर क्या था छलछलायी आँखों और काँपती सी आवाज़ में बोले "बेटा मैं तुम्हारे दादाजी जितना भाग्यशाली नहीं हूँ जो मर जाऊं, बस जी रहा हूँ मैंने बड़े पाप किये हैं मुझे ईश्वर भी नहीं बुलाता है " सुनकर ह्रदय भर सा आया, मैंने उनके झुर्रीदार और कांपते हाथों को थाम लिया और सुनने लगी ,उनके पास बहुत सी बातें थीं बताने को कुछ नयी कुछ बहुत पुरानी,ऐसा लग रहा था जैसे बादल से बारिश की बूँदें बिना किसी की इजाज़त के गिरे जा रही हैं वो डेढ़ घंटे तक मुझसे बातें करते रहे मुझे भी अच्छा लगा ,वहीं दूर बैठे मेरे कुछ रिश्तेदार मुझ पर हँस भी रहे थे की "न जाने क्या बातें हो रही हैं "पर मुझे किसी की परवाह नहीं थी, मैं उनकी बातें सुनना चाहती थी ,उनकी पत्नी का निधन और परिवार के स्वार्थ ने उन्हें तोड़ दिया है अब वो अकेले ही जीवन यापन कर रहे हैं ,किसी ज़माने में किसी बड़े सरकारी ओहदे में कार्यरत होने और अच्छी खासी संपत्ति होने के बावजूद आज उनके जीवन में केवल अकेलापन और दुःख है ,कितना ह्रदय विदारक है ना !!!

 आजकल के इस मोबाइल युग रिश्तों की महत्ता कम होती जा रही है,हम इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि हमारे पास किसी भी संबंध को सहेजने का समय नहीं है...ऐसे में बाकी रिश्ते तो किसी तरह सम्भल जाते हैं अगर कोई पीछे रह जाता है तो वो हैं हमारे वृद्धजन हमारे माता पिता या दादा दादी या कोई और , आधुनिकता ने हमें इस तरह से जकड़ रखा है कि हम अपने मूल्यों को भूलते जा रहे हैं,लेकिन यह ठीक नहीं है,जिन्होंने अपने जीवन का एक एक पल हमारे नाम कर दिया क्या हम उन्हें अपना कुछ समय नहीं दे सकते हैं,और उससे भी दुखदः तो ये है कि हम उन्हें वृद्धाआश्रम में छोड़ देते हैं,जहां वो अपने जीवन के उन सबसे मुश्किल समय को बिताते हैं जिस समय उन्हें अपने बच्चों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है....उनकी दिन प्रतिदिन बूढ़ी होती आंखें अपने बच्चों का इंतजार करते करते थक कर बंद हो जाती हैं,,और आपको जानकर आश्चयॆ होगा इनमें अधिकतर माता पिता उच्च पदों पर कार्य  कर रहे लोगों के होते हैं....पैसे रूपये और सुख सुविधाओं से हम अपने माता पिता का अकेलापन दूर नहीं कर सकते , इसलिए उन्हें समय दें क्योंकी हम सब भी एक दिन वृद्ध होंगे इसे सदा याद रखें,,,आपके बच्चे भी आपको देखकर ही सीखते हैं इसलिए वही करें जो आप पाना चाहते हैं,
बरगद पुराना ही सही आँगन में रहने दो..... 
....धन्यवाद

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