Thursday, April 23, 2020

उजड़ती प्रकृति


वृक्ष हमारे जीवन के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं यह बात कोई चर्चा का विषय नहीं है ,क्योंकि आज की इस शिक्षित आबादी में हर कोई इस बात से कभी ना कभी परिचित हुआ है,हम सब इस बात से भली भाँति अवगत हैं कि कल यदि पेड़ नहीं रहे तो क्या होगा ,फिर भी हम सब क्यों इतने बेफिक्र हैं क्यों हम हर दिन हज़ारों वृक्षों को काट रहे हैं , आप जानते हैं क्यों? क्योंकि हम मनुष्य किसी भी तथ्य को तब तक नहीं मानते जब तक वो बात सत्य सिद्ध ना हो जाये ,जैसे कि हम प्रलय में विश्वास नहीं करते और जो कुछ बिरले व्यक्ति विश्वास करते हैं हम उन पर विश्वास नहीं करते और इतना ही नहीं उनको लोग मूर्ख की संज्ञा देने से भी नहीं चूकते।

जहाँ मैं रहती हूँ वहाँ पर चारों ओर हरियाली हुआ करती थी,हवा में झूलते हुए यूकेलिप्टिस के पचासों पेड़ ऐसे लगते थे मानो मधुर धुन सुनके मग्न हो प्रकृति खुशियां मना रही हो , लेकिन आज वो सारे पेड़ काट दिए गए,मन इतना व्यथित है मानो किसी ने मेरे हिस्से की प्राण वायु छीन ली हो,और उन पेड़ों के काटने से जो सूनापन आया मानो किसी ने प्रकृति के अलंकार उतार दिए हों,मनुष्य का लालच न जाने पृथ्वी को किस  विनाश की ओर ले जा रहा है,क्या हम प्रकृति के कोप को भोगने के लिए तैयार हैं क्यूंकि वो दिन दूर नहीं जब प्रकृति हर उस विनाश का हिसाब मांगेंगी ,तो क्या हम उस परिस्थिति के लिए तैयार हैं।

यदि आज से पचास वर्ष पूर्व की बात की जाए तो उसकी तुलना में तब से अब तक सत्तर प्रतिशत वृक्ष कम हो गए हैं या यूं कहें कट गए हैं,कितने आश्चर्य की बात है फिर भी हम प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं क्या हुआ अगर कुछ पेड़ कट गए ,आज हम उन्नति के पथ पर आगे बढ़ तो रहे हैं..तो क्या इन पचास वर्षों में हमनें केवल प्रगति की या कुछ खोया भी...आप स्वयं सोचिये क्या बदला? हम सब बदल गए क्योंकि अब वायु में विष घुल रहा है ,कंही अल्पवृष्टि है तो कंही अनावृष्टि वर्षा ऋतु अपना अस्तित्व खोती जा रही है , अभी तक तो बोतल बंद पानी ही शुद्ध लग रहा है वो समय दूर नहीं जब बोतल बन्द प्राणवायु (ऑक्सीजन) भी खरीदना होगा,मनुष्य एक एक बूंद पानी का मोहताज हो जाएगा,क्या हम ऐसा निर्मम भविष्य अपनी आने वाली पीढ़ी को देना चाहेंगे? क्या इतना कठिन है एक वृक्ष लगाना क्या हम इतने स्वार्थी हो गए हैं कि जिस प्रकृति से इतना कुछ लेते हैं बदले में एक वृक्ष नहीं दे सकते...इसका उत्तर है क्यों नहीं...क्योंकि आज भी हमारे बीच ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने आने वाले ख़तरे को भाँप लिया है और अग्रसर हैं वृक्षों को बचाने के लिए एक बेहतर भविष्य देने के लिए..उदहारण अपने घर का ही देती हूँ मेरे त्रिपाठी परिवार ने निर्णय लिया कि हम अपने स्वजनों की समृति में पौधे लगाएंगे और उनको सहेजेंगे जब तक वो वृक्ष ना बन जाएं इस कार्य ने लोगों को प्रभावित किया अब लोग इसका अनुशरण करने लगे हैं मेरे पिताजी जो एक शिक्षक हैं और काका  जो एक समाज सेवक हैं उनके इस प्रयास से आज सैकड़ो पौधे वृक्ष बनने जा रहे ,यही जोश युवा वर्ग में जगाना है और प्रकृति उपहार और ऊसके अलंकार लौटाना है..
धन्यवाद 

नमस्ते मित्रों ये लेख मैंने दो माह पूर्व लिखा था पर प्रकाशित आज कर रही हूँ,सोचा भी नहीं था की आज जो मैं लिख रही हूँ उसका आने वाले दो महीनों अनुभव भी हो जायेगा ,यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है ,आशा करती हूँ प्रकृति माँ हम पर अपना स्नेह
फिर से बरसाए जिससे हम पुनः सामान्य जीवन जी सकें,मैं सभी पृथ्वीवासियोँ के स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए आप सभी से प्रार्थना करती हूँ की आपका जीवन बहुत अमूल्य है इसलिए "घर पर रहें ,जीते रहें ".

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