Tuesday, October 27, 2020

इश्क की डायरी

◆◆इश्क़ की डायरी◆◆
  


मुद्दतों से संभाली वो इश्क़ की डायरी
निकल ही पड़ी आज अलमारी से मेरी
जैसे आता है हवा का झोंका सर्द रातों में
जो देता है झकझोर अंदर तक बदन को
कंपा देता है रूह को मेरे वो यादों का बवंडर
जो संभाला था कब से जिम्मेदारियों की गर्म चादर में

इश्क़ इस क़दर था उनसे क्या कहें
कि मर भी जाते तो ग़म न होता
बेहयाई का आलम था कमबख़्त
और जवानी का ख़ुमार था मदमस्त
हर पन्ने पर थे उनके गर्म हाँथों के एहसास
और उनके दिए हुए कुछ सूखे गुलाब
याद आज फिर आया वो गुज़रा ज़माना
जब आज हमनें खोली वो डायरी इश्क़ की

बेवफ़ा न थे कभी मेरे इश्क़ के सारे वादे
थे सच्चे वो सब ख़ुदा की इबादत की तरह
बस तरज़ीह किसी और को दे दी तुमसे ज़्यादा
तुम्हारी सलामती की दुआ अब भी हर रोज़ करते हैं
कैसे बताएँ ऐ हमदम तेरी याद में हम हर रोज़ मरते हैं
जो हो न सकी मुक़म्मल मोहब्बत तेरी मेरी
पूरी करेंगे रूह बनके ये कहानी तेरी मेरी

समेट के सारे ख़्वाब,अरमान,एहसास और यादें
रख देती हूँ फिर से इश्क़ की डायरी के भीतर
जब डूबना होगा तेरी यादों के दरिया में
खोलूँगी फिर से ये डायरी इश्क़ की ।
★★★

प्राची मिश्रा


Monday, October 26, 2020

रंग सफ़ेद


 ◆◆रंग सफ़ेद◆◆


आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद
न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद

जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद

जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया

खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर 
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★

प्राची मिश्रा


आखिर कैसे भा जाए मुझे ये रंग सफ़ेद

न सुहाये फूटी आँखों से मुझे ये रंग सफ़ेद
एक तो है मन में पिया के विरहा की अग्नि
उस पर दिल जलाए मेरा ये रंग सफ़ेद
रंगों में छुपा लेती थी मन के अगणित भावों को
अब ना कुछ छुपाए मेरे दिल की ये रंग सफ़ेद

जानें कब और किसने ये मनहूस रीत बनाई होगी
रोती बिलखती अबला के माथे की लाली मिटाई होगी
सुहाग के हर एक चिन्ह को कैसे बदन से नोचा होगा
क्या बीत रही उस पर क्या किसी ने तब सोचा होगा
सर से खींच सिंदूरी अस्तर कर दिया होगा सबसे भेद
करके बेरंग उस दुखियारी को दिया होगा रंग दिया सफ़ेद

जिसने है खोया कोख़ का जाया न पहनें वो माँ रंग सफ़ेद
जिसने है खोया बाँह का भाई ना करे दुनिया उससे कोई भेद
जिसके सिर से हट गई छत पिता की हुए ना वो बच्चे बेरंग
जिसकी टूटी बुढ़ापे की लाठी न बदले वो पिता कोई ढंग
क्यों एहसास नारी को ही अधिक ये दिलाती है दुनिया
है तू अब अलग सबसे हरपल ये जताती है दुनिया

खोया है क्या उस पत्नी ने ये वो बेहतर जानती है
मत बताओ उसे मत सुनाओ उसे ,वो क्या माँगती है
रहने दो उसको अपने ही ढ़ंग से,करो ना ज़ुदा उसे रंगों से
नहीं है ये कोई एहसान दुनिया वालों का उस पर 
है ये अधिकार उसका जिये वो भी हक़ से
नहीं रुकती दुनिया किसी के जाने से
तो जीने दो उनको भी जो रह गए हैं उनके पीछे।
★★★

प्राची मिश्रा


कल जैसा कुछ नहीं होता है

◆◆कल जैसा कुछ नहीं होता है◆◆


क्यों करते हो कल कल हर पल

कल जैसा कुछ नहीं होता है

जो करता रहता है बस कल कल

वो हर हाल में एक दिन रोता है

जो करना है वो आज करो

कल जैसा कुछ नहीं होता है।


सब कुछ यहाँ रुक सकता है

पर रुक ना पाता समय कभी

जो समझ गया कीमत इसकी

उसने रुकना फिर सीखा न कभी

तो समझ लो इसकी कीमत को

सब कुछ है तुम्हारा आज अभी

कल जैसा कुछ नहीं होता है।


सब कल की दुनिया में ही जीते हैं

यहाँ आज को जीता है कोई कोई

जो जी लेता है आज यहाँ

उसे कल की जरूरत है ही नहीं

ये साँसों की कच्ची डोरी है

कब जाए चटक क्या जाने कोई

कर लो पूरे अरमान सभी बस आज अभी

कल जैसा कुछ नहीं होता है।

★★★

प्राची मिश्रा


आदमी

◆◆आदमी◆◆



जिंदगी की उधेड़ बुन में उलझा हुआ
सपनों के बाजार में खड़ा वो आदमी
अपनी मेहनत की जेब में पड़े हुए
कुछ औक़ात के सिक्कों को गिन रहा है
कौन सा सपना सस्ता और कौन सा है महँगा
क्या खरीद ले जाएगा आज वो घर अपने
और सजा देगा अपनों की पलकों पर
और क्या है जो छूट जाएगा अधूरा
बस अरमानों के मोलभाव में यूँ ही।

हर पल को बस अपनों के लिए जीता हुआ
दर्द के दामन को मर्दानगी  की सुई से सिलता रहा
कहीं दिख न जायें बेबसी के निशां किसी को
मुखौटे हर रोज़ हज़ारों बदलता रहा
कभी घुटता रहा कभी पिसता रहा
पर वो आदमी था तो यूँ ही हँसता रहा।

ये ज़माना भी कमाल करता है
जो रोयें अबला तो मलाल करता है
मर्दों के रोने पर सवाल करता है
इसी कश्मकश में डूबा हुआ वो आदमी
कर न सका दर्द ए बयां किसी से
बना रहा सख्त दरख्तों सा यूँ ही
दिल की नरमी दिखाता भी किसको।

हर रोज़ मेहनत से टूटता बिखरता हुआ वो आदमी
घर लौट आता है समेटे स्वाभिमान की चिल्लर
दिल में हों चाहे तूफ़ान कई और थकान भरे हों सारे अंग
न कहता किसी से ,बस सहता हुआ वो आदमी
बस बिखेर देता है घर में ठंडे झोकें सुख और आराम के
जीवन की उधेड़बुन में उलझा सा वो आदमी।
★★★
प्राची मिश्रा


विदाई

◆◆विदाई◆◆


आज एक बिटिया की विदाई है
अपनों से होने वाली असहनीय जुदाई है
वो रोती और सिसकती है
अपनों से हर बार लिपटती है
अब घड़ी विरह की आई है
आज एक बिटिया की विदाई है

पलकों में अश्रुधारा है
कंपित से तन मन सारा है
फिर भी हर्षित घर सारा है
आज मिला दामाद हमारा है
वो मुड़ मुड़ कर पीछे देख रही
दीवारों से कुछ बोल रही
रोती सी बजती शहनाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

माँ के आँचल को पकड़ रही
बाबा के कुर्ते से लिपट रही
भाई के हाँथों को भी चूम रही
दादी के आँसू पोंछ रही
बहनों को भी गले लगाती है
घर की कुछ बात बताती है
सब कहते अब वो पराई है
आज एक बिटिया की बिदाई है

आँगन की तुलसी वहीं खड़ी
कुछ बोझिल सी कुछ हर्षित भी
पानी का मटका वहीं पड़ा
कुछ खाली सा कुछ भरा भरा
रसोई की गर्मी भी कम सी है
वो गाय भी कुछ गुमसुम सी है
बिटिया के जाने की तन्हाई है
आज एक बिटिया की विदाई है

जो कल खिल खिलकर हँसती थी
अब दबी हँसी वो पाई है
जो फुदक फुदक कर चलती थी
सहमी सी चाल बनाई है
जिसकी पायल थी पतंग आसमानों की
आज कुछ बोझिल सी हो आई है
सीख उसने आज ढंग नया
रीति भी नई अपनाई है
आज एक बिटिया की बिदाई है।
●●●

प्राची मिश्रा


तेरे प्यार का नगमा होंठों पर

◆◆तेरे प्यार का नगमा होंठो पर◆◆

  


कहते कहते रुक जाते हैं

जब पास तुम्हारे आते हैं 

और बात उलझ सी जाती है

  मेरे उलझे जज़्बातों की डोरी में
  बस दिल की दिल में रह जाती है
  जब तुमसे कुछ कहने जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  तेरी आँखें कितनी हैं गहरी
  हम डूबके ही रह जाते हैं
  तेरी बेमतलब की बातें भी
  बस यूँ ही सुनते जाते हैं lp
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं

  क्या महसूस तुम्हें भी होता है
  मैं जो हरपल महसूस करूँ
  आसमान गुलाबी सा जो है
  ये महक भरी जो हवाएं हैं
  क्या ये बस मेरा सपना है
  या जादू सा कुछ तुम कर जाते हो 
  सब सोच के हम दिल ही दिल में
  बस यूँ ही शरमा से जाते हैं
  तेरे प्यार का नगमा होंठों पर
  हम धीरे धीरे गुनगुनाते हैं।
  ★★★
   
  प्राची मिश्रा
  


शिकायत नहीं है

◆◆ शिकायत नहीं है◆◆


मुझे नहीं है शिकायत किसी से
जो है जैसा है जितना है काफी है
मेरे हिस्से का है मिला जो मुझे
मेरी किस्मत ने जो भी दिया है मुझे
वो लोग जो करते हैं उल्फ़त मुझे
और करते हैं जो नफ़रत मुझसे
वो सब भी क़ुबूल हैं मुझको
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

वो छत जो मेरा जहाँ बन गयी
वो माँ जो मेरा आसमां बन गयी
वो गुल्लक के चंद सिक्के अमानत मेरी
वो मैली सी चादर सुकून बन गयी
वो धुधंला सा आईना जो दीवार पर टँगा
बड़ी साफ सी सूरत दिखाता मेरी
सब कुछ बहुत है उम्दा यहाँ क्योंकि
मुझे नहीं है शिकायत किसी से

मेरी खुशियों का वो आँगन मैला सा
मेरे ग़मों का वो टूटा चबूतरा
वो साथी मेरे कुछ पक्के से
वो मटके पानी के कच्चे से
वो बारिश भी कुछ मटमैली सी
और गर्मी की रुत बड़ी रूखी सी
सब कुछ है बस मेरे लिए
क्योंकि मुझे शिकायत नहीं है किसी से।
★★★

प्राची मिश्रा


मैं बता तो दूँ

◆◆मैं बता तो दूँ◆◆


मैं जता तो दूँ
वो दबे जज़्बात
मैं बता तो दूँ
जो है दिल में बात
पर बिखर जाएगा
रिश्तों का घरौंदा
टूट पड़ेगा आसमान
ढह जायेंगी कई दीवारें
मैं सोच अपनी चला तो दूँ

भर चुकी हूँ विचारों से
और अनगिनत प्रश्नों से
अंतर्मन में बंदी है जो
मेरी जैसी एक और मैं
स्वतंत्र उसे कर तो दूँ
पर रह जाऊंगी अकेली
मैं असली चेहरा दिखा तो दूँ

हर रोज़ खोदती हूँ
एक कब्र,मन में अपने
और दबा देती हूँ
राज़ और जज़्बात कई
हर किसी के दिल में
होता है ये कब्रिस्तान
मैं अकेली तो नहीं
वो मुर्दे गड़े मैं जगा तो दूँ
पर है क्या कोई
समझने वाला उनको
मैं बात अपनी समझा तो दूँ

हर रोज़ जब होती हूँ तैयार
नहीं भूलती हूँ पहनना
एक मुखोटा ,दुनिया के लिए
एक नहीं कई हैं मेरे पास
जो बदलती हूँ मैं
वक्त और हालत देखकर
एहसास और इंसान देखकर
मैं असलियत अपनी दिखा तो दूँ
कौन पहचानेगा मुझे
मैं चेहरे से पर्दा हटा तो दूँ।

ये सारी क़वायद
दुनिया में जीने के लिए
साथ सबके हँसने
और रोने के लिए
ये कहानी है सबकी
इंसानों की हर बस्ती की
पर कौन मानेगा
ये कहानी है उसकी
मैं भीड़ में उंगली उठा तो दूँ।
★★★
प्राची मिश्रा


एसिड अटैक

◆◆एसिड अटैक◆◆


जो मिल ना सकी वो मिटाई गई

देह उसकी बेरहमी से जलाई गई

सुंदरता जो बन बैठी काल उसका

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


बाबा की लाडो अम्मा की चिड़िया

घर की जान वो प्यारी सी बिटिया

जब पंखों से अपने उड़ने को हुई

कुछ कुंठित नज़रों से बच ना सकी

आकाश से यूँ धरा पर गिराई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


वो चीत्कार उसकी हृदय चीरती सी

वो तड़पती जैसे जल बिन मछली सी

ये जलन तन की ही नहीं मन की भी है

ये तड़प आज की ही नहीं उम्रभर की है

तोड़ हिम्मत उसकी बेबस बनाई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


वो बिखरी थी ऐसी जैसे माला के मोती

न खाती न पीती डर डर के वो सोती

कागज़ पर अध मिटी वो लिखावट के जैसी

निहारे न दर्पण हो गई कितनी गुमसुम सी

तन ही नहीं मन से भी जलाई गई

फेंक तेज़ाब सरे राह झुलसाई गई


समेटकर सारी हिम्मत और जज़्बा

फिर से वो जीना सीख ही लेगी

स्वर्ण की तरह तपाकर स्वयं को

वो ख़ुद निखरना सीख ही लेगी

पर उसकी झुलसी देह सदा ही

ये प्रश्न समाज से करती रहेगी

क्यों पहचान मेरी मिटाई गई

क्यों सरे राह मैं जलाई गई।

★★★


प्राची मिश्रा

मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

 ◆◆मेरा छोटा सा शहर जवान हो गया ◆◆




मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया
कल तक जो भोला सा बच्चा था
और सूझबूझ में थोड़ा कच्चा था
आज बड़ा ही बेईमान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

जो कल मार ठहाके हँसता था 
खुश बेमतलब ही जो रहता था
वो भूल गया है सब हँसना गाना
सीखा उसने खुद में ही खो जाना
बड़े बड़े ख़्वाबों की दुकान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

पैसों के पीछे भागना सीख गया
रिश्ते से भी अब वो ऊब गया
खुश खुद में ही रहना सीख गया
मिलता है कम अब वो यारों से
मेला सा है बाहर पर अंदर से वीरान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया

वो चौपालें भी अब सूनी हो गईं
जहाँ सजती थी महफ़िल दीवानों की
घर जो कल कच्चे थे पर दिल के सच्चे थे
आज मकान बन गये और दिल पत्थर से हो गए
गलियों  में मिलते जुलते भी अंजान हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया।

रोशनी में नहाया है पर अंदर से बड़ा काला है
झूठ की ऊँची माया है सच के मुँह पर ताला है
मन से हुआ गरीब पर तन से धनवान हो गया
जो बस्ती थी दिलवालों की आज सिटी स्मार्ट हो गया
मेरा छोटा सा शहर अब जवान हो गया
★★★
प्राची मिश्रा


मुझे रविवार चाहिए

 ◆◆मुझे रविवार चाहिए ◆◆




मुझे भी एक रविवार चाहिए
साल में बस एक दो बार चाहिए
खो रही हूँ अपने ही भीतर कहीं मैं
ख़ुद के साथ घण्टे दो चार चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सरपट दौड़ती रोज़ की सुबह नहीं 
एक दिन मीठी सी भोर चाहिए
रसोई की चिंता यूँ तो कभी जाती नहीं
पर एक दिन मुझे भी अवकाश चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए 

न कपड़े न बर्तन न झाड़ू न कटका
न बच्चों का होमवर्क न पानी का मटका
एक दिन इनकी न हो कोई फ़िक्र मुझे
एक प्याली गर्म चाय बिस्तर पर चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

सब बैठें हों जब साथ मैं किचन में न रहूँ
वो बातें वो ठहाके जो छूट गए थे कभी
वो सब एक दिन के लिए लौटा दो मुझे
आधी हँसी नहीं बेफ़िक्र मुस्कान चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए

घर के हर कोने में बसती है जान मेरी
मुझे प्यारी बहुत है ये दुनिया मेरी
शिकायत नहीं है ये है ख़्वाहिश मेरी
एक दिन मुझे भी थोड़ा आराम चाहिए
मुझे भी एक रविवार चाहिए
★★★

प्राची मिश्रा

मेघों का प्रेम


 

 ◆◆ मेघों का प्रेम ◆◆


हृदय मेघों का जब भी प्रेम में पिघल जाता है
बन के बूँद बरखा की धरा पर बरस जाता है
महक उठता है तन मन भूमि का सौंधी सी ख़ुशबू से
मधुर स्पर्श बूँदों का जब धरती के मन में होता है

प्यासी धरती के सूखे अधरों की बेचैन तड़पन को
कारे मेघों से बेहतर भला कौन जान पाता है
राह जिसकी ताकती है दिन रात ये धरती
वो निर्मोही सा घन भी तो बड़ी देरी से आता है

गरजकर तीव्र बेचैनी जब अपनी दिखाता है 
चमकती दामिनियों में तड़प अपनी सुनाता है
मिटा सन्ताप सारा धरा का कण कण भिगाता है
टूटकर अभ्र के मन से अवनि के तन में समाता है

कर श्रृंगार धरती का हरित अस्तर ओढ़ाता है
लुटाकर प्रेम अविरल नव अंकुर खिलाता है
सहती है धरती जितनी नभ के विरह की ज्वाला
वही पीड़ा वो बादल भी सहकर के आता है

नहीं होता सदा ही प्रेम में प्रेमी का मिल जाना
होता है प्रेम वो सच्चा के प्रेमी में ही मिल जाना
निभाकर प्रेम धरती से घन सदा हमको सिखाते हैं
प्रेम की पूर्ण परिभाषा स्वयं मिटकर बताते हैं
★★★

प्राची मिश्रा

Sunday, October 11, 2020

दोस्ती






 ◆◆दोस्ती◆◆

                      
जो कहते थे दोस्ती निभाएंगे उम्रभर
साथ ना छोंड़ेंगे किसी भी तूफ़ान में 
हवाएँ कुछ क्या ख़िलाफ़ हुईं हमारे
वो सूखे पत्तों की तरह बिखर गए 
उम्मीद कभी ना करते थे उनसे कोई
कुछ माँगे बिन ही वो यूँ मुकर गए

वो जो केवल जाम के साथी थे
वो अंजाम तक रुकते भी कैसे
मेरी बेबसी पर झूठे दिलासे देते रहे
हम भी हर ग़म उनसे ही कहते रहे
उन पर यकीं था ख़ुद से भी ज्यादा
शक़ तो हम ख़ुद पर ही करते रहे

ग़लत न वो थे न बेबस थे हम
बस सब वक्त का था तकाज़ा
चादर मेरे औक़ात की क्या हटी
असलियत उनकी नज़र आ गई
और आई नज़र वो गलतफहमियां
जो मेरे दिल को ढ़के हुए बैठी थीं

जाने क्या निभा रहे थे हम दोनों
जाने क्या क्या छुपा रहे थे हम दोनों
बात क्या थी जो वो कह ना सके हमसे
हम तो उन्हें दिल की चाभी देकर बैठे थे
नहीं जरूरी था दोस्ती मेरी जैसी वो भी निभाते
बस एहसान एक कर देते नक़ाब उतार कर आते

तोड़ कर मेरा विश्वास काँच के जैसे
मिलते हैं अब बड़े ही अदब से मुझसे
जानते हैं जिनकी हर एक हक़ीक़त अब हम
सोचते हैं वो बड़े ही नदान हैं अभी भी हम
वक़्त कहाँ रहता है एक सी अदा में हमेशा
बदलना तो फ़ितरत है इसकी ये याद रहे सदा
वक़्त का क्या है ये एक दिन गुज़र जाएगा
पर सबक जो मिला तुझसे याद रह जायेगा।
★★★
प्राची मिश्रा

क़लम की आवाज़


 

 ◆◆क़लम की आवाज़◆◆


कभी प्रेम लिखती है
कभी विद्रोह करती है
कभी स्वप्न बुनती है
कभी द्रवित बहती है
ढ़लती कवि रंग में
कवि जैसी रहती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है

हर्षित करे ये उर कभी
कभी आक्रोश भरती है
सत्य दिखला दे कभी
कभी भ्रमित करती है
तेज इसमें रवि सा कभी
कभी अंधकार लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है

यौवन लिखे नारी का कभी
कभी गाथा वीरों की लिखती है
बदल देती है सिहासन कई
जब कागज़ पर चलती है
इतिहास रच देती है नए
जब सत्य लिखती है
कभी युद्ध लिखती है 
कभी विनाश लिखती है
ये क़लम की आवाज़ है 
यूँ ही बेबाक़ कहती है

है क़लम वो सच्ची जहाँ में
जो कवि का ह्रदय लिखती है
लिखती है वो बात समाज की
जो ना किसी के भय में रहती है
है क़लम तब तक वो बड़े काम की
जब तक ना वो पैसों में बिकती है
ये क़लम की आवाज़ है
यूँ ही बेबाक़ कहती है।

★★★
प्राची मिश्रा



Monday, July 6, 2020

अधूरी हूँ तुम बिन


**  अधूरी हूँ मैं तुम बिन **

जैसे पुष्प बिना भौंरे के
जैसे धरा बिना आकाश के
जैसे दीपक बिना प्रकाश के
जैसे बदली बिना जल के
अधूरे हैं सब एक दूजे के बिन
वैसे ही अधूरी हूँ मैं तुम बिन

अधरों पे खिलती है हँसी जो मेरे
नैनों की चमक इक दीदार से तेरे
तेरी उँगलियों में उलझी मेरी उँगलियाँ
खुशबू है तेरी और महकती रहती हूँ मैं
रातें भी तेरी और तेरे हो गए हैं मेरे दिन
कुछ भी न सूझे अब तो तेरे बिन
अधूरी हूँ मैं तुम बिन

तेरा प्रेम जैसे शाम हो सुहानी
प्यारी लगे तेरी हर एक नादानी
खोके सब कुछ पा लिया मैंने तुमको
पलकों के साये में तुम रखते हो हमको
जैसे किनारे संजोते हैं नदिया का पानी
लगता नया मुझको हर पल हर दिन
क्योंकि अधूरी हूँ मैं तुम बिन

ये कैसा है रिश्ता ,है ये कैसा बंधन
दो अंजाने निभाते हैं इसको उमर भर
चाहे राहों में हों फूल या काँटे हज़ार
पथिक दोनों चलते डाले हाँथो में हाँथ
कुछ खट्टी कुछ मीठी थोड़ी कड़वी सी जिंदगी
अब तो हो जैसी भी न बितानी है तुम बिन
क्योंकि अधूरी हूँ मैं तुम बिन
★★★

प्राची मिश्रा 

Thursday, June 25, 2020

कॉटेज भाग - 5 ' अभिमन्यु '

                                                          कॉटेज भाग - 5 ' अभिमन्यु '










रोहित, नैना और रीना अब और भी डरे हुए थे, कल रात के हादसे के बाद रोहित कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था, आज उसे नैना के दर्द का एहसास हो रहा था जो उसने उस कॉटेज में झेला था, पर चुप बैठने से ये समस्या कहाँ टलने वाली थी ,उन सबको इससे निकलने का हल तो ढूंढना ही था।

रीना ने तय किया कि वो अपने तरीके से तहक़ीक़ात शुरू करेगी, उसने गूगल करके आरती सिंह के ऑफिस और घर का पता निकाला और दूसरे दिन ही उसके ऑफिस पहुँच गयी।
रीना ने अपना बॉयोडाटा लिया और इंटरव्यू देने के बहाने ऑफिस में गयी पर रिसेप्शनिस्ट से पता चला कि उनके ऑफिस में कोई हायरिंग नहीं हो रही है,पर रीना ज़िद पर अड़ गयी कि उसे एक बार सर से मिलना है उसके बाद भले ही वो चली जाएगी।
क्योंकि रीना एक बार आरती के पति से मिलना चाहती थी और समझना चाहती थी कि आखिर वो कैसा आदमी है ? और हो सकता है आरती के बारे में कुछ पता चल जाए।

बड़ी मिन्नतों के बाद रिसेप्शनिस्ट ने रीना को आरती के पति से मिलने की इजाज़त दे दी।
रीना गलियारे से चलती हुई आरती के पति के केबिन तक पहुँची पर उसे बड़ा अजीब लग रहा था,ऐसा लग रहा था कोई उसका पीछा कर रहा है ,कोई उसे हर पल घूर रहा है कि अचानक गलियारे में टँगी एक पेंटिंग ज़ोर से नीचे गिरी और उसके काँच हर ओर बिखर गए, जिसमें से एक काँच का टुकड़ा रीना के पैर पर भी चुभ गया,काँच टूटने की आवाज़ सुनकर आरती का पति अपने केबिन से बाहर आया, और रीना को संभाला, "ओ माय गॉड ,आर यू ओके" 
"या या आई एम फाइन सर" रीना ने हड़बड़ाते हुए कहा और अपने पैर के घाव को निहारने लगी।
" आई थिंक तुम्हें फर्स्टएड की ज़रूरत है, तुम मेरे केबिन में चलो , आई एम अभिमन्यु श्रीवास्तव" आरती के पति ने रीना की ओर देखते हुए कहा, और रीना को अपनी केबिन में ले गया, रीना काफी डरी हुई थी पर अभिमन्यु के सामने नॉर्मल होने का नाटक कर रही थी, अभिमन्यु ने फर्स्टएड किट निकल और रीना के घाव पर पट्टी करने लगा, रीना चारों तरफ उत्सुकता से देख रही थी , अभिमन्यु केबिन काफी बड़ा और आलीशान था , तभी लाइट अचानक जलने और बुझने लगीं ,रीना और घबरा गई, 
"ओफ्फो पता नहीं लाइट में क्या प्रॉब्लम आ गयी ,अभिमन्यु ने कहा "
और फोन करके रिसेप्सनिस्ट को लाइट की प्रॉब्लम को ठीक करवाने को कहा।
"ये लीजिये हो गया,क्या अब आप बेहतर महसूस कर रहीं हैं" अभिमन्यु ने रीना के कंधे पर है हाँथ रखते हुए कहा और धीरे धीरे कंधे को सहलाने लगा।
रीना को करेंट जैसा लगा, उसने अभिमन्यु का हाँथ हटाते हुए कहा
" यस आई एम ओके नाउ"
रीना अभिमन्यु के कमीनेपन को भाँप चुकी थी, abhiअब उसे अभिमन्यु से बचके काम को अंजाम देना था।
"तो बताइए क्या बात करनी थी आपको मुझसे" अभिमन्यु के आंखें मटकाते हुए कहा
"सर मुझे एक जॉब की तलाश है पर आपकी रिसेप्सनिस्ट ने बताया कि  कोई वेकैंसी नहीं है, एक्चुअली आरती मैम से एक बार मेरी मुलाकात  हुई थी और उन्होंने कहा था कि, मैं जब भी प्रयागराज आऊँ तो एक बार उनसे जरूर मिलूँ" रीना ने अभिमन्यु से कहा
"अच्छा कब और कहाँ मुलाकात हुई थी आपकी आरती से" अभिमन्यु ने रीना से पूछा उसके चेहरे पर अचानक हवाइयाँ उड़ने लगीं
" सर मैं उनसे दो साल पहले ऊटी में मिली थी,एक्चुअली मैं तब अपने दोस्तों के साथ छुट्टियाँ मनाने ऊटी गयी थी और उसे दौरान आरती मैडम से मुलाकात हुई थी,तब उन्होंने बताया था कि प्रयाग में उनका बिज़नेस है" रीना ने बताया
"और क्या कहा था आरती ने" अभिमन्यू ने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा
"यही की अगर कभी मैं प्रयाग आऊँ तो उनसे जरूर मिलूँ ,और कुछ दिन बाद उनके लापता होने की न्यूज़ अखबार में पढ़ी थी"
रीना ने कहा
"तो तुम यहाँ कैसे " अभिमन्यु ने रीना से पूछा
"दरअसल मैं जॉब की तलाश में लखनऊ आयी थी वहाँ मेरा घर है ,फिर मुझे आरती मैडम का ख़्याल आया तो सोचा पता कर लेती हूँ ,शायद कोई जॉब मिल जाये " रीना ने कहा 
"ओके मैं समझ गया , अब आरती तो यहाँ नहीं है,पर मैं उसकी बात जरूर रखूँगा,मैं तुम्हें कल तक कॉल करके बता दूँगा,अगर कोई वैकेंसी है तो" अभिमन्यु ने कहा
" थैंक्यू सो मच सर,और मुझे आरती मैडम के लिए बहुत अफ़सोस है,सर आप भी तो मैडम को बहुत मिस करते होंगे"  रीना अब अभिमन्यू का मन पढ़ने का कोशिश कर रही थी
" हाँ बहुत याद आती है आरती,मैं आज भी उसका इंतज़ार कर रहा हूँ शायद वो वापस आ जाये ,मैंने बहुत ढूंढा उसे पर न जाने वो कहाँ चली गयी " अभिमन्यु ने अफसोस दिखाते हुए कहा
" सुनकर दुख हुआ सर,मेरी प्रार्थना है कि आरती मैडम वापस आ जाएं" रीना ने कहा
"ओके सर अब मैं चलती हूँ,आपके कॉल का इंतजार रहेगा" कहते हुए रीना उठी और चलने को हुई
"ओके ,मैं तुम्हें बाहर तक छोड़ देता हूँ" अभिमन्यु ने रीना की कमर पर हाँथ रखते हुए कहा
रीना थोड़ा असहज सी हो गयी और पीछे हटते हुए बोली," इसकी कोई आवश्यकता नहीं सर मैं चली जाऊँगी ,आप परेशान ना हों"
"इट्स ओके रीना ,कोई परेशानी नहीं " अभिमन्यु अपनी लार टपकाते हुए कहा ,की अचानक लाइट जलने बुझने लगी और एक लैंप ज़ोरदार आवाज के साथ फुट गया
अभिमन्यू और रीना चौंक गए, "ओफ्फो ये लाइट भी न, पता नहीं क्या प्रॉब्लम है" अभिमन्यु ने कहा
"सर मैं चलती हूँ" रीना ने फिर कहा
"ओके रीना , टेक केअर" अभिमन्यु ने कहा
और रीना वहाँ से निकल गयी, वो पसीने से तरबतर हो रही थी और बहुत घबराई हुई भी थी,किसी तरह वो नैना के पास पहुँची।

उसने नैना और रोहित को अभिमन्यु के कमीनेपन और ऑफिस में घटी घटनाओं के बारे में बताया, नैना ने रीना को शांत किया और सोचने लगी आगे कौन सा कदम उठाना है।

नैना मन में एक प्लान बना चुकी थी,उसने रोहित से कहा  "तैयार हो जाओ हमें मदर टेरेसा स्कूल जाना है एक और राज से पर्दा उठाना है"
"पर नैना तुम वहाँ क्या पता करोगी " रोहित ने कहा
" वही जो आरती की आत्मा वहाँ पता करने गयी थी" नैना ने कहा 

नैना और रोहित स्कूल पहुँचे, और नैना ने स्कूल के चपरासी को दो हज़ार का नोट देते हुए कहा  "हमें कुछ जानकारी चाहिए उसके बदले दो हज़ार और मिलेंगे, लेकिन और किसी को इसके बारे में पता नहीं चलना चाहिये,अब आप अपना कसम जानते हैं"
" मैडम क्या जानकारी चाहिए आपको" चपरासी ने कहा 
" आरती सिंह वो बिज़नेस वोमेन क्या आप उनको जानते हैं और उनका इस स्कूल से क्या सम्बन्ध है क्या आप बता सकते हैं" नैना ने कहा
"आरती मैडम को मैं अच्छी तरह जानता हूँ मैडम,दरअसल मेरी घरवाली मैडम के घर में काम करती है और मैडम के बच्चे इशिता और रोहन भी तो इसी स्कूल में पढ़ते हैं" चपरासी ने बताया
" क्या बच्चे स्कूल आते हैं अभी" नैना ने पूँछा
" हाँ मैडम आते तो हैं ,पर आरती मैडम के गायब होने के बाद दोनों बच्चे बहुत उदास रहते हैं और घर पर वो जल्लाद सौतेला बाप और उसके रखैल दोनों बच्चों को परेशान करते हैं" चपरासी ने कहा
"क्या मैं बच्चों को दूर से एक बार देख सकती हूँ" नैना ने कहा
" जी देख तो सकती हैं पर अभी छुट्टी होने में टाइम है अगर आप इन्तज़ार कर सकें तो मैं आपको डोर से दिखा सकता हूँ" चपरासी ने कहा
" ठीक है मैं इंतज़ार करूंगी, आप बताईयेगा बच्चे जब बाहर आएं" नैना ने कहा
और कुछ देर बाद जब स्कूल की छुट्टी हुई तब चपरासी ने दो बच्चों की तरफ इशारा किया, आठ से दस साल के दो बच्चे बाहर आये दोनों के चेहरे मासूम और मुरझाए हुए से थे ,दोनों स्कूल से निकलकर एक कार में बैठ गए , आज नैना को आरती का मकसद कुछ कुछ समझ आ रहा था,उसका मन बहुत बेचैन हो उठा था,आज उसे आरती से हमदर्दी सी हो गयी थी ,दोनों बच्चों को देखकर नैना द्रवित हो उठी,अब चाहे जो भी हो आरती के बच्चों की मदद तो करनी ही होगी, नैना ऐसा ही कुछ मन में सोच रही थी,तभी रोहित ने कहा " नैना अब हमें चलना चाहिए"
नैना की तन्द्रा टूटी " हाँ चलो " नैना ने कहा

रोहित और नैना होटल पहुँचे और रीना को सारी बात बताई, मामला अब और भी उलझ गया था कि तभी सारी लाइटें जलने बुझने लगीं और खिड़कियाँ अपने आप खुलने बन्द होने लगीं, नैना अब जानती थी कि ये सब आरती ही कर रही है, आज वो डर नहीं रही थी क्योंकि वो जानती थी आरती ये सब क्यों कर रही है।

उसी रात जब नैना और रोहित सो रहे थे, की तभी नैना को ऐसा लग कोई उसकी चादर खींच रहा है,नैना उठकर बैठ गयी, उसे ऐसा लगा कोई रो रहा है, रात के एक बज रहे थे ,नैना उठी और रूम से बाहर आई तो देखा बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ है, धीरे धीरे बाथरूम की तरफ गई तो देखा ज़मीन पर कोई औरत नीचे सर झुकाए बैठी है और रो रही है, " क कौन हैं आप, और यहाँ क्या कर रहीं हैं" नैना ने डरते हुए कहा 
तभी उस औरत ने अपना चेहरा उठाया, और ये देखते ही नैना के होश उड़ गए ये तो खुद नैना ही थी, पर वो बहुत भयावह लग रही थी ,वो तेजी से नैना की तरफ झपटी और नैना का गला दबाने लगी , नैना उसके चंगुल से निकलने की बहुत कोशिश कर रही थी पर निकल नही पा रही थी ,वो अपने हाँथ पाँव पटक रही थी , की तभी उसे रोहित की आवाज सुनाई दी , "नैना नैना क्या हुआ उठो " और नैना की आँख खुली, "क्या हुआ था नैना तुम नींद में इतना छटपटा क्यों रही थी" रोहित ने पूँछा
"रोहित मैंने बहुत बुरा सपना देखा " और नैना रोहित के गले लग कर रो पड़ी
"शांत हो जाओ नैना सब ठीक है" रोहित नैना को दिलासा देता हुआ बोला
" न जाने कब इस मनहूसियत से पीछा छूटेगा रोहित ,मैं थक चुकी हूँ ,अब बर्दास्त नहीं होता" नैना फट पड़ी और रोहित का हाँथ पकड़ कर बोली "कुछ करो रोहित, कल हम पंडित जी से मिलने चलें क्या"
"ठीक है नैना ,अभी तुम सो जाओ " रोहित ने कहा

और दूसरे दिन
रीना को अभिमन्यु का कॉल आया " रीना क्या तुम मेरे ऑफिस में आकर मुझसे मिल सकती हो एक जॉब है तुम्हारे लिए"
अभिमन्यु ने कहा
"ओके सर , मैं आ जाऊँगी" रीना ने जवाब दिया
इधर नैना और रोहित पंडित जी से मिलने गये और सारी बात बताई, तो पंडित जी ने नैना से कहा  " नैना आरती की आत्मा तुमसे कुछ कहने की कोशिश कर रही है ,हमें एक विधि करके पता लगाना होगा,उसकी आत्मा को बुलाना होगा और पूँछना होगा"
"कब करनी है विधि " रोहित ने पूँछा
"कल रात करेंगे,मैं कुछ सामान बताता हूँ वो लाना होगा, और हां आरती की कोई एक चीज लानी होगी जो वो इस्तेमाल करती रही हो" पंडित जी ने कहा
तभी रीना ने कहा आज अभिमन्यू ने मुझे ऑफिस बुलाया है,मै कोशिश करूँगी की ऐसी कोई चीज ला पाऊँ जो आरती इस्तेमाल करती रही हो।
"रीना अपना ध्यान रखना और कोई भी दिक्कत हो तो हमें कॉल करना ,हम तुरंत पहुंच जाएंगे" रोहित ने कहा
"आप चिंता ना करें अभिमन्यु जैसे कमीनों को हैंडल करना जानती हूँ मैं,चलती हूँ उसके ऑफिस जाना है "रीना ने कहा
अब नैना कल रात का इंतज़ार कर रही थी
आखिर क्या कहना चाहती है आरती की आत्मा और कैसे लाएगी रीना आरती की कोई चीज,पढ़िए अगले अंक में।
क्रमशः
★★★
धन्यवाद
प्राची मिश्रा

कॉटेज भाग - 4 ' आईना '

                                                         कॉटेज भाग - 4  ' आईना '







नैना और रीना आज ऊटी से इलाहाबाद के लिए निकले पर उनकी फ्लाइट की टिकट बैंगलोर से थी क्योंकि रीना को अपने आफिस में कुछ काम था और उसे छुट्टी भी लेनी थी, रीना अपनी बहन नैना से बहुत प्यार करती थी और इस मुश्किल दौर में वो नैना का साथ हरगिज़ नहीं छोड़ सकती थी।

रास्ते में रीना ने नैना की ओर देखा उसका कांतिहीन चेहरा और बेजान शरीर बहुत ही निर्मम लग रहे थे, आखिर किस अपराध की सज़ा मिली थी उसको, बैंगलोर तक का सफर कार से तय करना ठीक लगा क्योंकि नैना की तबियत अभी भी ज्यादा ठीक नहीं थी, रीना रास्ते में नैना का पूरा ध्यान रख रही थी।
उसने नैना से पूछा   "दीदी क्या आपको सच में याद नहीं आपके साथ उस कॉटेज में क्या हुआ था?"
नैना ने कार से बाहर की ओर देखते हुए एक लंबी सांस भरी और कहा
"मैं अगर चाहूँ तो भी उस भयानक कॉटेज और उसमें कटे वो नर्कीय दिन कभी भी भुला नहीं पाऊंगी" और नैना के चेहरे का रंग बदल गया उसके हाँथ काँपने लगे।
"पर आपने तो सभी से कहा की, आपको कुछ याद नहीं" रीना ने पूछा
"क्या बताती उनको,वो लोग कभी भी मेरी बातों पर यकीन नहीं करते और ना ही वो लोग उस दर्द को समझ पाते जो मैंने महसूस किया है,उनके लिए तो ये सब एक भूत प्रेत की बनावटी कहानी ही होती"

नैना का दर्द छलक उठा वो अपने निरन्तर बहते आंसुओं को पोंछने लगी,रीना ने उसे गले से लगा लिया और सांत्वना देते हुए बोली  " दीदी मैं समझ सकती हूं आप क्या महसूस कर रही हैं अगर आप चाहें तो मुझे बता सकती हैं ,आपका मन हल्का हो जाएगा,ये मैं आप पर छोड़ती हूँ अगर आप नहीं बताना चाहतीं तो कोई बात नहीं"

नैना ने खुद को संभाला और अपने आंसुओं को पोंछते हुए बोली  " न जाने क्यों मेरा मन ऊटी जाने के नाम से ही बेचैन था पर रोहित की ख़ुशी को देखकर कुछ बोल न सकी ,बार बार अजीब से संकेत मिलते रहे फिर भी मैं नहीं संभली ,और उस रात न जाने क्यों ना चाहते हुए भी उस कॉटेज के पास जा पहुंची ,ऐसा लगा अगर सच में किसी को मेरी जरूरत होगी और अगर मैं उसकी मदद ना करूँ तो कल कंही ये मेरे पछतावे का कारन न बन जाये ,बस यही सोच कर रोहित को बिन बताये उस बंद पड़े कॉटेज की तरफ चल पड़ी थी मैं "

"लेकिन वहां था क्या दीदी ?"   रीना ने उद्विग्न होते हुए पूछा 

"चारों तरफ अँधेरा और मनहूसियत थी वहां ,जैसे ही कॉटेज के पास गयी किसी के रोने की आवाज आ रही थी ,बहुत डर लग रहा था और दिल जोर जोर से धड़क रहा था फिर भी सोचा की देख लेती हूँ क्या पता कोई तकलीफ में हो ,यही सोच गलत थी मेरी ,जब अंदर गयी तो देखा वहां कोई भी नहीं था बस घुप्प अंधेरा था ,यूँ लग रहा था दीवार दीवारें मुझे दोनों हांथो से पकड़ने की कोशिश कर रही हों ,जैसे छत मुझे घूर रही हो और फर्श बस मुझे अभी निगलने के लिए मुंह फाड़ने वाली हो ,मैं दरवाजे से चिपकी हुई थी और रोहित को पुकार रही थी ,पर कोई भी मुझे नहीं सुन रहा था,महसूस हो रहा था कोई है जो मेरे आस पास है और मुझे घूर रहा है,दरवाजा पीटते पीटते कब नींद आ गयी कुछ पता ही नहीं चला ,जब सुबह नींद खुली तो खुद को बहुत ही कमज़ोर महसूस कर रही थी जैसे किसी ने मेरे शरीर की सारी ताकत निचोड़ ली हो ,बाहर झांक कर देखा तो रोहित उस बहरूपनि के साथ था,कुछ समझ नहीं आया ,अपना दिमाग धुनती रही और सोचती रही ,लेकिन एक बात अच्छी थी की कॉटेज में पानी था जिसने मुझे जिन्दा रखा ,अब हर रात मैं दरवाजे से चिपक कर उसके खुलने का इन्तजार करती और सुबह खुद को और कमजोर पाती ,अगर उस कपल ने दरवाजा नहीं खुलवाया होता तो मेरा मरना तो तय था " और नैना सुबक पड़ी 

रीना ने फिर से नैना को संभाला और उसे पीने के लिए पानी दिया |

"एक और बात थी ,जो मुझे परेशान कर रही है " नैना ने पानी का घूँट लेते हुए कहा 

"और वो क्या है दीदी" रीना ने पूछा 

"अगर आरती की आत्मा रोहित के साथ चली गयी थी तो मुझे ऐसा क्यों महसूस होता था कि कोई मेरे आस पास है,कानों में किसी के फुसफुसाने की आवाजें आती रहती थीं,क्या वहाँ और भी कोई था"
नैना ने रीना को बताया

"दीदी ये बातें बहुत ही डरावनी हैं आप बहुत ही हिम्मतवाली हैं,आपकी जगह कोई और होता तो शायद पहले दिन ही मर गया होता"
रीना ने नैना का हाँथ पकड़ते हुए कहा

"शायद रोहित के प्यार ने मुझे मरने नहीं दिया" नैना ने कहा

दूसरे दिन रीना और नैना प्रयागराज पहुँच गए ,और एक होटल में कमरा बुक करके वहीं रुक गए।

"रीना रोहित को कॉल करो और पूँछो वो कहाँ है" नैना ने कहा

रीना ने झट से रोहित को कॉल किया  "हैलो जीजू आप लोग प्रयागराज पहुंच गए क्या?"

"हाँ रीना हम प्रयागराज में ही हैं,तुम्हारी दीदी भी ना पता नहीं कहाँ कहाँ घुमाती रहती है,हम मदर टेरेसा स्कूल घूमने आए हैं," रोहित ने कहा।

"अच्छा ,गुड गुड,,, वैसे दीदी कहाँ हैं " रीना ने पूँछा
"अभी बात कराता हूँ, अरे अभी तो यहीं थी कहाँ चली गयी,में थोड़ी देर से कॉल करता हूँ" ये कहते हुए रोहित ने फ़ोन काट दिया ,और नैना को ढूंढने लगा ,बहुत ढूंढने के बाद देखा तो नैना इंक्वायरी रूम में थी, रोहित नैना के पास गया और पूँछा "अरे तुम यहाँ हो मैं तुम्हे कब से  दूध यह रहा था,क्या कर रही हो तुम,चलो रीना का कॉल आया था वो तुमसे बास्त करना चाहती थी,चलो चलें"

"अरे कुछ भी नहीं मैं तो बस यूँ ही यहाँ आ गयी थी, तुम चिंता मत करो मैं रीना को बाद में कॉल कर लूंगी ओके। " नकली नैना ने मुस्कुराते हुए कहा।

इधर रीना ने नैना को सारी बात बताई तो नैना ने रीना से कहा "तुम रोहित कॉल करो और मेरी बताई जगह पर आने को कहा पर उसको बोलना वो अकेले ही आये"  , रीना ने वैसे ही किया ।

और थोड़ी देर बाद रोहित ,रीना की बताई हुई जगह पर आ गया,
"अरे रीना तुम प्रयागराज में क्या कर रही हो, तुमने तो मुझे सरप्राइज ही दे दिया, और ये अजेले आने की बात क्यों की " रोहित ने कहा

"जीजू आप मेरे साथ आइये मैं सब बताती हूँ " रीना ने रोहित को समझाते हुए कहा।

रीना ने रोहित को बड़े हनुमान मंदिर में बुलाया था वहाँ के पुजारी बहुत सी सिद्ध शक्तियों के उपासक थे ,नैना को ये बात उसकी माँ ने बताई थी ,और इस समस्या से निबटने का ये एक बेहतर तरीका था इसिलिये नैना पुजारी जी के पास आई थी और सारी बातें साफ हो जाएं इसिलिये  उसने रोहित को भी बुला लिया था।

रीना रोहित को लेकर मंदिर के अंदर पहुँची ,पुजारी जी अपने आसान पर बैठे थे ,सामने भगवान की बड़ी सी प्रतिमा थी , "आओ बेटा ,अंदर आओ" पुजारी जी ने रोहित को बुलाया।
"प्रणाम गुरुजी" रोहित ने उनके पैर छूते हुए कहा ,और बैठ गया वो अब भी कुछ समझ नहीं पा रहा था आखिर रीना उसे मंदिर में क्यों लेकर आई है।

"जीजू मैं आपको जो बात बताने चाहती थी उसके लिए मंदिर से बेहतर और कोई जगह नहीं हो सकती थी और पुजारी जी आपकी सारी दुविधाओं को दूर करेंगे बस आप समझने की कोशिश कीजियेगा"
रीना रोहित को समझाते हुए बोली।

"ठीक है ,पर बात क्या है मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है और थोड़ी घबराहट भी हो रही है क्या तुम मुझे साफ साफ बताओगी "
रोहित ने कहा

"ठीक है, सब बताती हूँ,,,, दीदी बाहर आ जाईये" रीना ने पुकारा
और नैना बाहर आई, नैना को देखकर रोहित और कंफ्यूज हो गया,क्योंकि वो जिस नैना के साथ था वो तो अच्छी खासी तंदुरुस्त थी,तो फिर सूखे से शरीर और मुरझाये से चेहरे वाली ये दूसरी नैना कौन है?

"य ये क कौन है रीना,बिल्कुल मेरी नैना की तरह पर इतनी कमज़ोर और मुरझाई सी मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ,मैं नैना को तो अभी होटल में छोड़ कर आया हूँ" रोहित ने घबराते हुए कहा

"बेटा ये सब प्रकृति की माया है,जो तुम्हारे साथ है वो बस एक परछाई है ,एके अतृप्त आत्मा ,जो अपने अधूरे काम पूरे करने के लिए तुम्हारी पत्नी का रूप लेकर आई है, और ये तुम्हारी असली पत्नी है और में इसे प्रमाणित भी कर सकता हूँ" पुजारी जी ने रोहित को शांत करते हुए कहा।

"पर मैं कैसे मान लूँ ,ये कैसे हो सकता है,ये क्या हो रहा है,में पागल हो जाऊंगा" रोहित उद्विग्न होने लगा।

"मैं ही तुम्हारी नैना हूँ, ये शॉल तो याद होगा तुम्हें" नैना ने रोहित की तरफ वो गुलाबी शाल बढ़ाते हुए कहा ।

"ये शॉल तो, इसका मतलब तुम मेरी नैना" रोहित रो पड़ा और नैना को गले से लगा लिया।
रोहित के गले लगकर नैना अपनी सारी तकलीफ़ें भूल गयी ,दोनों आँसुओं से सराबोर हो गए, और अपनी तकलीफ़ें बाँटने लगे।

"तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गयी नैना?,क्या इसकी वजह वो है जो मेरे साथ है,ये क्या हो गया तुम्हे,तुमने मुझे कुछ बताया क्यूँ नहीं"
रोहित बस खुद को कोस रहा था।

"हाँ!! मेरी इस हालत की जिम्मेदार वो ही है, पर उसके पीछे भी एक दर्द भरी कहानी है" और नैना ने सारी बात विस्तार से रोहित को बताई।

रोहित की आंखें नैना के दर्द को सुनकर बस आँसुओं से भरी थीं।

"पर अब आगे क्या" रोहित ने कहा
"हमें आरती सिंह के बारे में पूरी जानकारी निकालनी होगी, और उसके यहाँ आने का मकसद पता करना होगा ,इसमें हमें पुलिस की मदद भी लेनी होगी और पुजारी जी भी हमारी मदद करेंगे, तुम अभी उस आत्मा के साथ ही रहो उसे शक हुआ तो वो फिर से हमें नुकसान पहुंचा सकती है" नैना ने कहा

"क्या तुमने कुछ अजीब महसूस किया ,जब से वो आत्मा तुम्हारे साथ है बेटा" पुजारी जी ने पूछा

"ऐसा कुछ खास तो नहीं, पर हाँ उसने घर आते ही बेडरूम का आईना निकाल दिया ,मैंने जब पूँछा तो बोली आप बाथरूम वाला उसे कर लो ,मुझे किसी ज्योतिष ने कुछ दिन तक आईना बेडरूम से हटाने के लिए कहा है,और हाँ जबसे वो आयी है मैंने उसे कुछ भी खाते पीते नहीं देखा ,कुछ बोलता था तो डाइटिंग में हूँ या बाद में कहा लूँगी या पहले ही खा लिया कहकर टाल देती थी, वो मेरे साथ सोती भी नहीं थी ,कहती थी कुछ दिनों के लिए अलग सोने के लिए किसी बाबा ने कहा है ,मैं भी नैना से बहुत प्यार करता हूँ इसलिए उसकी गर बात की रिस्पेक्ट करता रहा" रोहित ने कहा

"वो एक परछाई है ,इसलिए वो खा पी नहीं सकती और आईने में उसे उसका असली रूप दिखाई देता है जो वो तुम्हें दिखा नहीं सकती इसीलिए उसने आईना हटा दिया, लेकिन नैना के साथ उस कॉटेज में कोई और भी था,"एक पिशाच", जिसने नैना के शरीर से थोड़ी थोड़ी करके खून चूसा ,वही उस कॉटेज की रखवाली कर रहा था और उसी ने आरती की आत्मा को बाहर निलकने में मदद की,दोनों का निदान करना होगा" पुजारी ने कहा

"मैं आरती सिंह के बारे में पता लगाऊँगी" रीना ने कहा

"रोहित अब तुम मुझसे तब तक नहीं मिलोगे जब तक सब ठीक नहीं हो जाता,मैं तुम्हारी जान खतरे में नहीं डाल सकती,हम फोन और massages से बात करते रहेंगे" नैना ने कहा।

"बेटा ये लो अभिमंत्रित आईंना और रक्षा सूत्र तुम्हारी सुरक्षा के लिए, आज रात उसके सोने के बाद तुम इस आईने में उसकी असली सच्चाई देख सकते हो ,और इससे वो तुम्हें नुकसान भी नहीं पहुंचा पाएगी ,ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें" पुजारी जी ने रोहित को आशीर्वाद देते हुए कहा।

"ठीक है ,नैना मैं चलता हूँ ,अपना ख्याल रखना ,हम जल्द ही इस मुसीबत से पीछा छुड़ा लेंगे "रोहित ने नैना का हाँथ पकड़ कर हिम्मत देते हुए कहा, और वहाँ से चला गया।

इधर रीना ने आरती सिंह के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया।

रोहित होटल पहुँचा तो देखा वो दूसरी नैना सो चुकी थी,उसने सोचा आईने का इस्तेमाल करके देखता हूँ,उसने आईना निकाला  और उस आत्मा के चेहरे के पास लाकर देखा तो रोहित की आंखें फटी की फटी रह गईं ,उसका चेहरा बहुत ही भयानक था ,चेहरे का माँस दिख रहा था उस पर कीड़े रेंग रहे थे,रोहित डर से काँपने लगा कि तभी उस आत्मा की आँखे खुल गईं और रोहित के हाँथ से आईना नीचे गिर गया,उसने अपने हाँथ के इशारे से रोहित दीवार पर चिपका दिया और उसका गला मरोड़ने लगी,तभी रोहित को रक्षा सूत्र का खयाल आया उसने जेब से उसे निकाला और ज़ोर से उस आत्मा की तरफ फेंका, जिससे आत्मा ने रोहित को तड़ से नीचे पटक दिया और हवा की तरह खिड़की से बाहर निकल गयी,रोहित ने रक्षा सूत्र गले मे पहन लिया ,और नैना को कॉल कर सब कुछ बता दिया।
"रोहित तुम इसी वक्त मेरे पास आ जाओ" नैना ने कहा
और रोहित नैना के होटल जा पहुँचा वो बहुत ज्यादा डरा हुआ था और कांप रहा था।
अब किसी भी तरह आरती की आत्मा का मकसद पता कर इस डर से पीछा छुड़ाना था उन तीनों को।

क्रमशः

क्या है आरती की सच्चाई,क्यों गयी थी वो मदर टेरेसा स्कूल,क्या रोहित खुद को आरती की आत्मा से बचा पायेगा,कैसे उस कॉटेज वाले पिशाच से मुक्ति मिलेगी, पढ़िए अगले अंक में।

कॉटेज भाग - 3 'वेटर'

                                                       
                                                             कॉटेज भाग - 3 ' वेटर '






आज नैना और रीना उस होटल में गए जहाँ नैना और रोहित रुके थे,और काउंटर पर जाकर होटल में कर्मचारी से उस बन्द कॉटेज के बारे में पूँछ तांछ शुरू की।
होटल के कर्मचारी कुछ भी बताने को तैयार नहीं थे ,उन्होंने कहा कि उस कॉटेज की ऐसी कोई हिस्ट्री नहीं है ,जो कि किसी बुरी घटना से जुड़ी हो ,पर नैना को इस पर विश्वास नहीं हुआ पर वो हार नहीं मानना चाहती थी इसलिए उसने होटल के मैनेजर से मिलने की बात कही।
बड़ी रिक्वेस्ट के बाद होटल वालों ने नैना की मुलाकात होटेल के मैनेजर से कराई।

"हैलो मैं ही इस होटल का मैनेजर हूँ ,"विकास कामत" बताइये क्या मदद कर सकता हूँ आपकी" मैनेजर ने कहा
नैना ने कहा   
"सर पिछले दिनों मेरे साथ जो हुआ वो आपसे छुपा तो नहीं है,पर मैं पुलिस को इसमें इन्वाल्व नहीं करना चाहती थी इसीलिए मैंने उन्हें कुछ भी नहीं बताया ,पर मैं ये नहीं मान सकती कि उस कॉटेज में कुछ भी नहीं, क्योंकि मेरे साथ जो कुछ भी हुआ है, आप इमैजिन भी नहीं कर सकते"
नैना की आंखें भर सी आयीं और गला रुंध सा गया...

"देखिए ,मैडम ये हमारे होटल की रिपोटेशन का सवाल है ,फिर भी जैसा कि आपने पुलिस को कुछ ना बताकर हमारी मदद की है,तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है मुझसे जो हो सके मैं आपकी मदद करूं"
होटल मैनेजर ने नैना की तरफ देखते हुए कहा।

"आपका बहुत शुक्रिया" नैना ने कहा

"मैडम ये बात दो साल पहले की है ,उस कॉटेज में एक कपल रुका हुआ था, और उनके साथ कुछ ऐसा हुआ कि हमें वो कॉटेज रातों रात बन्द करना पड़ा और हमनें उस कॉटेज में बुकिंग्स देना बंद कर दिया मैडम"   मैनेजर ने कहा।

"पर ऐसा क्या हुआ था उस कपल के साथ " नैना ने उत्सुकता से पूछा

"मैडम , उनके साथ बड़ी अजीब घटना हुई थी ,जो हसबैंड वाइफ वहां रुके हुए थे,वो दिल्ली से छुट्टियाँ बिताने यहाँ आये थे और जिस दिन वो यहाँ आये थे,उस दिन तो सब ठीक रहा पर अचानक रात में उस आदमी की ज़ोर ज़ोर से चीख़ने की आवाजें आने लगीं ,जब होटल स्टाफ़ ने जाकर देखा तो ,वो औरत खून नहाई टूटी हुई बोतल लेकर उस आदमी पर वार कर रही थी उस वक्त वो बड़ी ही भयानक लग रही थी उसके बाल बिखरे हुए थे और चेहरा खून से लाल था,वो आदमी बहुत ही बुरी हालत में था और हॉस्पिटल ले जाते समय उसकी मौत हो गयी थी"  मैनेजर ने गम्भीर होकर कहा।

"लेकिन इस औरत ने ऐसा क्यों किया क्या वो नशे में थी या फिर कोई मेंटल प्रॉब्लम या दोनों में कोई झगड़ा हुआ था"  नैना की उत्सुकता और बढ़ गयी।

"मैडम ,पहले हमें भी यही लगा,पर थोड़ी ही देर में वो औरत नार्मल हो गयी और चीख चीखकर रोने लगी ,वो अपने पति की ऐसी हालत देखकर सभी से पूँछ रही थी "ये किसने किया ये कैसे हुआ",और जब हमनें बताया कि "ये सब आपने ही तो किया है" ,तो वो बोली वो ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि वो अपने पति से बेहद प्यार करती है और वो तो सो रही थी, अभी अभी उसकी नींद खुली है और पुलिस ने उसके सारे टेस्ट करवाये थे न तो वो नशे में थी और न ही कोई मेंटल प्रॉब्लम थी उसको ,
"उसके बाद कुछ दिन पुलिस इन्वेस्टिगेशन के लिए वो कॉटेज बंद रहा और बाद में भी उसमें कुछ अजीब एक्टिविटी होने के कारण ,हमारा स्टाफ़ भी वहाँ जाने से डरने लगा और मज़बूरन एक पादरी को बुलवाकर उस कॉटेज को हमेशा के लिए बंद करा दिया गया"   मैनेजर ने बताया।

"क्या आप मुझे उस कपल का कॉन्टैक्ट नम्बर दे सकते हैं"  नैना ने कहा

"मैं दे देता मैडम ,पर आप बात किससे करेंगी उनके परिवार में वो दो हसबैंड वाइफ ही थे ,और पति की मौत हो चुकी है और पत्नी उसके कत्ल की सज़ा काट रही है " मैनेजर ने कहा

"ओह ! कोई बात नहीं, क्या बस यही बात है,,,? और कुछ अगर आपको याद आ रहा हो तो आप बता सकते हैं सर" नैना ने कहा ।

"नहीं मैडम बस इतना ही है जो मेरे जेहन में है" मैनेजर ने कहा 

"ओके थैंक यू सो मच" नैना ने कहा

"मैडम अगर आपको कोई ऐतराज ना हो तो एक बात पूँछ सकता हूँ?,"
मैनेजर ने नैना की ओर देखते हुए कहा।
"जी पूछिये " नैना ने कहा
"आप उस कॉटेज में कैसे पहुँची और एक हफ़्ते तक आप जिंदा कैसे रहीं" मैनेजर ने उत्सुकता दिखाते हुए कहा।
"सच कहूँ तो मुझे कुछ भी याद नहीं" नैना ने कहा
"कोई बात नहीं,पर आप ठीक हैं इस बात की खुशी है मुझे" मैनेजर ने कहा।
"तो फिर हम चलते हैं ,आपकी मदद के लिए बहुत शुक्रिया" नैना ने कहा
और फिर नैना और रीना वहाँ ने बाहर निकल गयीं

सामने देखा तो वही होटेल का कर्मचारी ,सामने से आते हुए दिखा , उसने नैना को देखकर अपना रास्ता बदल दिया और दूसरी तरफ चला गया, अब नैना का शक और गहरा गया,वो रीना से बोली "तुम बाहर चलो मैं एक मिनट में आई मुझे वाशरूम जाना है" 
रीना ने कहा "ओके दीदी ई विल वेट आउटसाइड" 
थोड़ी देर बाद नैना वापस आई और रीना के साथ बाहर निकल कर होटल के पास एक गार्डेन में जाकर बैठ गयी ।

"दीदी हम यहाँ क्यों बैठे हैं,अब तो आपको सब पता चल गया न तो होटल चलें " रीना ने पूछा

"नहीं रीना हमें जो पता है वो बस आधा रहस्य है पूरी बात अभी भी हमें नहीं पता है,वही बात पता करने के लिए हम यहाँ आये हैं" नैना ने कहा

"वो कैसे दीदी,क्या कोई आने वाला है" रीना ने कहा
"हाँ उसे आना ही होगा, क्योंकि अब उसके पास कोई चारा नहीं" नैना ने कहा।
"कौन आने वाला है दीदी" रीना ने उत्सुकता से पूछा
"होटल का वो कर्मचारी जिसके बारे में मैंने तुम्हें बताया था,उसका बरताव कुछ अजीब था,पहले दिन से ही जब मैं उससे मिली थी, आज फिर मुझे देखकर वो मुझसे छुपने लगा ,तो मैंने काउंटर पर एक चिट्ठी छोड़ी है उसके लिए" नैना ने कहा

इधर होटल में उस कर्मचारी को काउंटर वाला आदमी वो चिठ्ठी देता है,जिसे देखकर उसके पसीने छूटने लगते हैं, उसमें लिखा था
"मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती हूँ,दो साल पहले जो कुछ भी हुआ था वो सब मैं जान चुकी हूँ ,अभी पास वाले गार्डन में आ के मिलो वरना पुलिस तुमसे ज्यादा दूर नहीं है"।

वो कर्मचारी गार्डेन पहुंचा ,नैना और रीना पहले ही उसका इंतजार कर रहे थे ,वह उनके पास गया और बोला

"मैं नहीं जानता ,कि आप क्या जानती हैं मेरे बारे में पर मैडम मैं एक ईमानदार आदमी हूँ और मैंने जो कुछ भी किया था वो मेरी मजबूरी थी,जिसके लिए मैं खुद को दिन रात कोसता हूँ, और कभी कभी तो मेरा मन करता है कि मैं पुलिस को सब कुछ बता दूं मैडम, पर फिर परिवार का खयाल मुझे रोक लेता है उनका मेरे सिवाय कोई नहीं "
इतना कहते कहते वो फूट फूट कर रोने लगा

"क्या तुम हमें अपनी ज़ुबानी बताओगे उस दिन क्या हुआ था" रीना ने कड़े स्वर में कहा।

"मैडम बात दो साल पुरानी है,होटल में एक आदमी और एक औरत रुकने के लिए आये उन्होंने वही कॉटेज बुक कराया जो अब बन्द पड़ा है,दोनों मैडम और सर बहुत ही अच्छे थे,और मैडम तो और भी अच्छी थीं,मैं दो दिन में उनका ख़ास बन गया था ,सब बढ़िया जा रहा था, सर ने मेरा कॉन्टैक्ट नम्बर भी ले लिया था और कहते थे ,तुम जब चाहो इलाहाबाद आ सकते हो,वो मुझे अच्छी खासी टिप भी देते थे, मैं भी उनका खास खयाल रखता था।"  कर्मचारी ये सब नैना को बता रहा था

"और उस दिन शाम को मेरा बेटा सीढ़ियों से गिर गया उसे बहुत ज्यादा चोंट आ गयी उसका सर फट गया था ,तो डॉक्टर ने ऑपेरशन करने के लिए कहा और मुझसे डेढ़ लाख रुपये जमा कराने को कहा,मैं इतने पैसे कहाँ से लाता,अपनी बेबसी और मरते हुए बेटे को देखकर रोने के सिवाय कुछ नहीं सूझ रहा था।

होटल मालिक को फोन कर पैसे मांगे तो उसने ये कहके मना कर दिया कि "नए कर्मचारी को हम इतना एडवांस नहीं दे सकते",
तभी मुझे उन साहब का फोन आया, "पैसे चाहिए तुम्हें,तो अभी होटल आ के ले जाओ" और फोन काट दिया।
"उस दिन मौसम बहुत खराब था बारिश और तूफान जोरों पर थे ,मैं किसी तरह रात के अंधेरे में होटल पहुंचा रात काफी हो चुकी थी इसलिए होटल में चहल पहल भी ना के बराबर थी, मैं सीधे कॉटेज की तरफ गया, "सर दरवाज़ा खोलिये मैं हूँ जोसेफ़" ,मैंने आवाज़ लगाई"
सर ने थोड़ा सा दरवाज़ा खोलकर मुझे अंदर आने का इशारा किया और मेरे अंदर आते ही दरवाज़ा बन्द कर लिया।

अंदर कमरा बहुत फैला हुआ था , सिगरेट और शराब की गंध पूरे कॉटेज में फैली हुई थी, सर सोफे पर बैठ गए और फिर से एक सिगरेट जलाई और पीने लगे ,मैंने हिम्मत जुटाकर कहा 
"सर मुझे पैसे की सख्त जरूरत है, मेरे बेटे के सर पे गहरी चोंट है अगर ऑपेरशन नहीं हुआ तो अनहोनी हो सकती है सर ,आप प्लीज मुझे पैसे दे दीजिए मैं ,थोड़ी थोड़ी करके आपके पास वापस कर दूंगा"

सर थोड़ा मुस्कुराये और मुँह से सिगरेट का कश लेते हुए बोले "आई नो जोसेफ़ तुम्हें पैसे की सख़्त जरूरत है तुम्हारे एक कलीग ने सब बताया मुझे ,इसीलिए मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया है,मैं तुम्हें पैसे दे दूंगा अभी और हाँ उसे लौटने की भी कोई जरूरत नहीं हैं"
मैंने सर हाथ चूम लिए और रो पड़ा ,
तब सर ने फिर कहा " पर एक प्रॉब्लम है"
मैंने सर की तरफ देखा तो उन्होंने कहा " जोसेफ़ हर चीज की एक कीमत होती है,मैं तुम्हे पैसे दे दूंगा ,बस एक छोटा सा काम करना होगा तुम्हें"
"क्या काम है सर ,बताइये मुझे ,मैं करूंगा" मैं अपने बेटे को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था।
"अच्छा सोच लो एक बार फिर " सर ने मुस्कुराते हुए कहा
तो मैंने भी कहा "मैंने सोच लिया है आप काम बताइये"
"तो फिर ठीक है ,आओ मेरे साथ" और सर ये कहते हुए मुझे बेडरूम की तरफ ले गए ,बेडरूम में घुसते ही मेरे पैर ठिठक गए ,आँखे फट गयीं ,बेड पर मैडम की लाश पड़ी थी,उनकी दोनों आँखे छत को ताक रही थीं और चेहरा नीला पड़ चुका था ,बेड पूरी तरह से अस्त व्यस्त था ऐसा लग रहा था ,किसी ने तकिये से मुँह दबा के मैडम को मारा हो और मैडम ने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की हो।
मैं हक्का बक्का रह गया,
सर ने मेरी ओर देख कर कहा 
"बहुत प्यार करता था मैं अपनी बीवी से पर ये बदचलन निकली,इसका अफ़ेयर चल रहा था किसी के साथ,जब मैंने इसे समझाने की कोशिश की तो मुझसे बहस करने लगी और मैंने गुस्से में इसे मार दिया,मुझे इसका कोई दुख नहीं"
मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था,बस मूर्ति की तरह खड़ा था।
"इसकी लाश को ठिकाने लगाने में मेरी मदद करो ,मैं तुम्हें दो लाख रुपये दूँगा" सर से कहा।
"पर पर मैं कैसे सर,किसी ने देख लिया तो आप और में दोनों फंस जायेंगे ,मेरे पीछे मेरा पूरा परिवार है सर " मैंने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है मैंने,क्योंकि तुम ऊटी के चप्पे चप्पे से वाकिफ़ हो ,कोई ऐसी सुनसान जगह बताओ जहाँ हम इस लाश को दफना सकें,और भूलो मत तुम्हें पैसे की जरूरत भी तो है कौन देगा इतने पैसे तुम्हें" सर ने कहा

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था मरते हुए बेटे को बचाने के लिए न चाहते हुए भी इस पाप में साथ देना पड़ा।

मैंने सर से कहा "ठीक है पीछे वाले गेट से लाश को सूटकेस में भरकर बाहर निकालेंगे ,वहाँ सीसीटीवी कैमरा नही है ,और दस किलोमीटर दूर एक जंगल है वहाँ हम लाश को दफनाया जा सकता है।

हमने लाश को बड़े से बैग में भरा और बाहर निकाल ने ही वाले थे कि किसी की आवाज सुनाई दी, किसी कॉटेज में बड़ा सा साँप निकल आया था और भीड़ इक्कट्ठी हो गयी थी,बाहर जाना मुश्किल था,सब लोग जाग रहे थे।
मुझे किसी भी तरह ये काम खत्म करके हॉस्पिटल पहुँचना था , इसलिए हमनें लाश को कॉटेज में ही दफनाने का प्लान बनाया, कॉटेज की फर्श कच्ची थी और उसके ऊपर लकड़ी के टाइल्स बिछे हुए थे।
हमनें बेड को एक तरफ खिसकाया और वहाँ की टाइल्स को निकालकर गार्डनिंग वाले औज़ार से धीरे धीरे खोदना शुरू किया ,हमें काम ऐसे करना था कि आवाज बाहर न जाये।

हमने कॉटेज के खिड़की दरवाजे अच्छी तरह से बन्द कर रखे थे जिससे आवाज़ बाहर न जाये और वैसे भी कॉटेज साउंड प्रूफ बनाये गए हैं।
हमने कमर तक का गढ्ढा खोदा और मैडम की लाश को दफ़न दिया सब कुछ पहले जैसा कर दिया और उसके ऊपर वापस बेड रख दिया ।

काम होने के बाद सर ने मुझे पैसे दिए और साथ ही साथ मोबाईल से खींचा हुआ एक फोटो भी दिखाया जिसमें मैं मैडम की लाश को सूटकेस में डाल रहा हूँ,और कहा" ये बस मेरी सिक्योरिटी के लिए हैं बाकी तुम तो समझदार हो तुम किसी से कुछ नहीं कहोगे ये मैं जानता हूँ"

और कहा "अब एक काम और करना ये बेहोशी की दवा है इसे मुझे सुंघा देना जिससे मैं बेहोश हो जाऊँगा और फिर तुम दरवाजा खुला छोड़ कर चले जाना,लोगों को लगेगा मेरी बीवी का अपहरण हुआ है,बाकी मैं सब देख लूंगा"

मैंने वैसा ही किया ,पैसे लेकर होस्पिटल आया ,मेरे बेटे का ऑपेरशन हो गया,दूसरे दिन अखबार में ख़बर आयी कि "इलाहाबाद की मशहूर बिज़नेस वोमेन आरती सिंह ऊटी से लापता" और मैडम कि फोटो भी थी तब पता चला ,वो आदमी मैडम का दूसरा पति था पहले पति की मौत के बाद मैडम ने उस आदमी से दो महीने पहले ही शादी की थी।

"मैं आज तक खुद को माफ नहीं कर पाया हूँ मैडम" जोसेफ़ ने रोते हुए कहा।

"पर तुम्हारे होटल के मैनेजर ने तो कोई और ही कहानी बताई थी,किसी दूसरे कपल की जिसमें वाइफ ने हसबैंड को मार दिया था,तो फिर ये कौन सी नई कहानी है"  नैना ने जॉसेफ को घूरते हुए कहा

"मैनेजर साहब सच कह रहे हैं मैडम ,क्योंकि उनको आरती मैडम के बारे में कुछ नहीं पता है,और वो कपल आरती मैडम के मर्डर के एक हफ्ते बाद आया था,और वाइफ ने हसबैंड को मार दिया था,मैं वहीं था ,वो मुझे ऐसे घूर रही थी जैसे वो मुझे मारना चाहती हो,मैं समझ गया वो आरती मैडम ही थीं,तब से हर रात मैं डर डर के सोता हूँ नींद भी नहीं आती ,मैंने नाईट शिफ्ट करना भी बंद कर दिया है,वो मुझे पल पल मार रही है, मैंने बहुत बड़ा क्राइम किया है मैडम,दो दो जिन्दगियां बर्बाद कर दीं।
जोसेफ़ रो रो कर सब बता रहा था।


अब नैना को कुछ कुछ धुँआ छंटता हुआ सा दिख रहा था।
उसने जोसेफ़ से कहा "तुमने गलत किया पर तुम्हारी मुश्किल भी समझती हूँ ,मैं तो किसी से कुछ नहीं कहूंगी पर तुम्हारा गुनाह छुप नहीं सकेगा"
इतना कहकर नैना रीना के साथ वहाँ से चली गयी।
"रीना तुम लखनऊ रोहित को कॉल करो और पूँछो वहाँ क्या हो रहा है"नैना ने कहा
"ओके दीदी" रीना ने रोहित को कॉल लगते हुए कहा
"हैलो जीजू कैसे हो आप और दीदी कैसी हैं" रीना ने रोहित से पूँछा
"अरे यार क्या बताऊँ जब से तुम्हारी दीदी ऊटी से आई है न जाने क्या हो गया है न खाती है न पीती है और अब एक नई रट लगा रखी है की "इलाहाबाद जाना है घूमने" तो बस इलाहाबाद जा रहे हैं कल ,और बताओ तुम किसी हो बैंगलोर में" रोहित ने पूछा
"मैं ठीक हूँ जीजू, ओके बाद में बात करती हूँ",बाई"   और रीना ने फोन काट दिया।
नैना अब सब समझ चुकी थी,
उसने रीना से कहा "इलाहाबाद जाना होगा टिकिट बुक कर लो"
आखिर क्या होने वाला है इलाहाबाद में क्या रोहित असली नैना को पहचान पायेगा ,पढ़िए अगले अंक में।
क्रमश:
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प्राची मिश्रा


हाँ!मैं औरत हूँ

◆◆हाँ! मैं औरत हूँ◆◆ नए ज़माने के साथ मैं भी क़दम से क़दम मिला रही हूँ घर के साथ साथ बाहर भी ख़ुद को कर साबित दिखा रही हूँ हर क...